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तो दौड़ पड़ते थे दास-दासी आज वही देहरी पर बैठी देव नही थी उड़द के बाकुले और वे भी बासी
उधर
तपरत महावीर को आहार देने के लिये प्रतीक्षाओं के अनेक घट गीत गये थे अभिग्रह ऐसा था कि मुंठ की ओर हाथ बढाये पाँच महीने पच्चीस दिन बीत गये थे
प्रकाश-पर्व : महावीर /104
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