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उन्होंने संकल्प लिया था
अभिग्रह किया था
'यदि हो कोई अविवाहित राजकुमारी
बेकसूर और सदाचारी
बन्दी - अवस्था में पड़ी हो
पाँवों में बेड़ी
हाथों में हथकड़ी हो
सिर मुण्डा हुआ हो
रोटी-पानी को तीन दिन से न छुआ हो सूप में लिये हो
उड़द के बाकुलों का आहार
एक पाँव देहरी के भीतर
एक बाहर रनवे कर रही हो इन्तज़ार
चेहरे पर खुशी के भाव रखने हों
और आँखों में आँसू भरे हों
इन तेरह सयोगों को जब देखूंगा एक साथ तभी भिक्षा के लिये फैलाऊँगा हाथ
अन्यथा रचता रहूगा
तप के अखण्ड अध्याय देह रहे या जाय'
इस अभिग्रह में
एक सन्देश साफ़ था
महावीर का तप
नारी को भोग्य सामग्री मानने के खिलाफ़ था
'नानी मनुष्यता का सम्मान है
ऐसा था उनका विचार
उन्हें
पारणा नहीं करना था
उन्हें तो करना था
किसी घोन दुर्दशाग्रस्त नानी का उद्धार
महापुरुषों का एक-एक कर्म
भावी समाज-रचना के बीज बोता है
उनका पलकें झपकाना
और साँस लेना तक उर्वर होता है।
प्रकाश पर्व : महावीर / 105
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