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चन्दना एक बार फिर छली गई
तीन दिन तीन रात भूख-प्यास-वेदना नही उसके साथ तब सेठ घर आया सामान उतारा चठदना बिटिया को पुकारा कहीं से न पाया कोई उत्तर कोशिश करने पर सुनाई दिया धीमा-धीमा एक स्वर“मैं यहाँ हूं पिता जी तलघर के भीतर"
सेठ ने ताला नवोला बिटिया की दुर्दशा देनव हृदय डोला सागरा धैर्य पल-भर में खोया
फूट-फूट कर सोया चन्दना ने चुप कराया कहा“पिता जी ! तीन दिन से कुछ नहीं नवाया कुछ खाने को दो भूनव के पंजे से जान छूटे यह आर्त ध्यान टूटे'
जिस घर में टूटता नहीं था दान का सिलसिला उसी घर मे अपनी बेटी के लिये सेठ को उड़द के बाकुलों के अलावा कुछ नहीं मिला सूप में समय कर वही दिये कहा-“मैं लुहार बुलाता हूँ तेरे बंधन काटने के लिये" चन्दना को प्यास लगती थी
प्रकाश-पर्व : महावीर /103
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