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था । और प्रत्येक क्षेत्रमें प्रकाश दिखानेवाला प्रमुख व्रत अहिंसा ही सबको दिया । अहिंसा के विकासके लिये लोगों में शाकाहारका प्रचार किया गया अहिंसाका साम्राज्य चहुंओर फैला इसीलिये भगवान महावीर के तीर्थ स्थलको समन्तभद्राचार्यने 'सर्वोदय' कहकर पुकारा क्योंकि वहां बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक 1 जीवको सुख शान्ति देने की कोशिश की जाती थी ।
पुरातन सर्वोदय तीर्थसे आज के सर्वोदय आन्दोलनकी विशेषताओं में समानता बताते हुये, सर्वोदय तीर्थजी अन्य अनेक विशेषताएं भी समझाई हैं । प्रत्येक नागरिकको ७ बातें माननेके fer कहा गया है जिसमें प्राकृतिक भोजन, समताका व्यवहार, प्रिय बच्चन, शोषण न करना, इन्द्रिय निग्रह, स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग और आत्मशक्ति में विश्वास प्रमुख है । बाबूजीने स्पष्ट ही कहा है- " मैं भगवान महावीरके सर्वोदय तीर्थकी तरह जीवमात्रके प्रति कल्याण भावना रखकर मानव आगे बढ़ें और विवेकसे काम ले तो महान लोककल्याण हो ।"
हिंसाको तात्विक विवेचना
इस २३ पृष्ठकी पुस्तक में जिनेश तथा राकेशके बातचीत के माध्यम से बाबूजीने अहिंसाको तात्विक विवेचना की है। राकेश afarst मखौल उड़ाता है और नई नई शंकाएं सामने उपस्थित करता है । मैं तो यही समझता हूं कि समाज के उन लोगों का जो अहिंसा में विश्वास नहीं करते, उसका उपहास करते हैं, आलोचक तथा व्यर्थकी बकवाद करनेवाले हैं, राकेश प्रतिनिधित्व करता है। तथा ऊटपटांग की हुई बातों का जिनेश बड़े शांतता और धैर्यता से उत्तर देता है । और बीच बीचमें तुलसी, कबीर, हजरत मुहम्द, कन्फ्यूशस, कवि फरदौशी, सकन्दर, पिथागोरस
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