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________________ (८५) अहण किया गया है। शिवपुराण, प्रभासपुराण और महाभारतको 'अनुशासन पर्व' सिद्ध भी करता है। दोनों में समता बताते हुये बाबूजीने लिखा भी है " भगवान ऋषभका चिह्न बैल, उधर शिवजीका वाहन मिलता है। जैसे शिव जटाजूट युक्त थे, वैसे ही भगवान ऋषभकी जटाजूट युक्त मूर्तियां बनानेका विधान जैन शाखोंमें है। ____ कहते हैं कि शिवजीके निर्मितसे गंगाजीका अवतरण पृथ्वी पर हुआ, जेन शास्त्र भी बताते हैं कि गंगा जहां भूतल पर अबतीण हुई वहां गंगाकूटमें भ० ऋषभकी जटाजूट मूर्तियां मौजूद हैं । त्रिशूलधारी और अन्धकासुर विध्वंशक शिवजी जैसे कहे गये हैं वैसे ही अहंतदेव ऋषभ हैं। ऋषभदेबको प्रायः सब बातें शिवजीसे मिलती हैं। अतः उन्हें अभिन्न समझना चाहिए । ऋषभ ही प्रतीकरूपमें शिव कहे गये हैं। इस तरहसे यह बात विदित होती है कि यह पुस्तक बड़ी ही तथ्यपूर्ण तथा अत्यधिक प्रयासके बाद संसारके समस्त धर्म ग्रन्थोंके अध्ययनके बाद लिखो गई है। सर्वोदयका सार्वभौम स्वरूप सन् १९५९ में प्रथमबार प्रकाशित ८ पृष्ठीय ट्रेक्ट सर्वोदय विचारधारा पर बाबूजी द्वारा लिखा हुआ है। इसमें यह बताया गया है कि आज जो सर्वोदयका रूप महात्मा गान्धीने समाजके मामने रखा और आचार्य विनोबा जिसे आगे प्रसारित करने में लगे हैं उसमें भ्रमकी प्रधानता ही स्पष्ट झलकती है। वैसे पुराने इतिहासके आधार पर वह जाना जाता है कि भगवान ऋषभदेव कृषि आदि कर्मोंका आविष्कारकर जनताको श्रमका पाठ पढ़ाया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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