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________________ (८४) ऋषभ वेदोंके द्वारा आदि देव माने गये। अथर्व वेद (१९, ४२, ४), भक्तामरस्तोत्र भी इसी प्रकारको पुष्टि करते हैं। भागवत पुराण स्कन्ध ५, मार्कण्डेय पुराण, कम पुराण, शिवपुराण, विष्णु पुराण, अग्नि पुराण, लिंगपुराण, ब्राह्मण पुराण, स्कन्धपुराण, बाराह पुराण, वायु महापुराण, प्रभास पुराण, मनुस्मृति और महाभारत के प्रसंग देकर विभिन्न धर्म ग्रन्थोंमें भगवान ऋषभका स्थान बताया है। वैदिक साहित्यके अतिरिक्त प्रसिद्ध बौद्ध ग्रन्ध धम्मपद' 'आर्यमन्जु श्री मूल कल्प', 'न्याय बिन्दु'के नामोल्लेखोंका वर्णन किया है। सिक्खोंके गुरु गोविंदसिंहने अपने 'दसम ग्रन्थ साहिब' में भी ऋषभदेव को सम्मान दिया है। तामिल और कन्नड साहित्य भी इससे अछूता नहीं रह सका। डा० राधाकृष्णन् और डा० ए० पी० कारमारकरने भी ऋषभके आद्वतीय योगी बताया है। __अब तक जितनी मूर्तियों और शिलालेख खुदाईके द्वारा प्राप्त हुये हैं उन शिलालेखोंका वर्णन अच्छी तरहसे किया है। मूर्ति योंको देखनेसे स्पष्ट होता है कि ५-६ इजार वर्ष पूर्वकी ऋषध. देवकी मूर्तियां बनने लगी थी। बिभिन्न प्रकार की पुरातत्व विभाग द्वारा उपलब्ध सामग्रीकी अोरसे भी इतिहासकार लाभ नहीं उठाना चाहते इसीलिये डॉक्टर साहब को कहना पड़ा। ___ "संभव है कि आम आदि भगवानके जीवनचरित्रकी महत्ताको समझकर हमारे इतिहास लेखक अपनी मूलको पहिचान लगे। विदेशी विद्वानों प्रो० डी० हाजिमें नाकामुरा, इट डीके प्रो. ज्योसेफ्टुरशी, डॉ सिल्वालेचीने भी अपने विचार प्रकट किये हैं। विदेशों में जहांसे ऋषभदेवकी मूर्तियां मिली हैं या आज भी मौजूद हैं उनका वर्णन भी किया गया है। भनेक ग्रंथों में भगवान ऋषभ और शिवको ए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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