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नहीं मिटता, बदलेसे बदला नहीं चुकता, आगसे आग नहीं बुझती। प्रेमकी शीतलधारा ही वैरकी अग्निको बुझाती है। जीव इस सत्यको पहचान कर सीखे और उस पर व्यवहार करे तो जीवनमें शान्ति मिलती है। ___ मोटर में बैठे हुवे चार यात्रियोंसे जो हस्तिनापुरका मेला देखने जा रहे हैं शान्तिनाथकी जीवन झांकीके बीच में ही फैशन पर कटाक्ष करवाया है ?" एक यात्री बोला......आज तो महिलाएं फैशनके पीछे दिवानी हो रही हैं।' 'अजी, धर्म कर्म कौन करे नह तो शृङ्गारके मारे पेटके धन्धेसे भी चुनती हैं। तीसरा बोला 'अरे भाई, क्या कहें ? नहाधोकर क्रीमादि जाने क्या क्या लगाती हैं, जो चर्षी, मछलियों, केपरों, अंडोंकी सफेदी आदि अपवित्र पदार्थोसे बनाई जाती है।'
चौथेने कहा-"समयकी बलिहारी है।"
वह पहला आदर्श विवाह
यह एक बहुत छोटो १२ पेजकी पुस्तक है जिसमें बाबूनीका एक लेख भगवान ऋषभदेवके शुभ विवाह पर है। १ दिसम्बर सन् १९५७ में आयुष्मती सत्यवतो जैन व चिरंजीव सन्तलाल जैनका विवाह संस्कार नई दिल्ली में हुआ था। उस समय विवाह पक्षीय लोगोंके निवेदन पर यह पुस्तक नबम्बर ५७ में लिखी गई थी जिसमें अन्य कवियोंकी कविताएं भी दो तीन संकलित हैं।
प्रारम्भमें तो संक्षिप्त जीवन परिचय है और बादको बिवाहकी आवश्यकता तथा उसके आदर्श स्वरूपकी व्याख्या को है। भगवान ऋषभके यह बन्द किसने शिक्षाप्रद है जरा विचारिये
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