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________________ तो जैनधर्मको पुनः प्रकाशमें लाये थे। इन्हें आप्तदेव तो इसलिये माना जाता है कि वे सर्वज्ञ परमात्मा थे । शान्तिका सन्देश सन् १९५६ में १५ पृष्ठको इस पुस्तकका प्रकाशन हुआ। राजीव और उसके पिताके बीच इस पुस्तकमें तीर्थंकर श्री शान्तिनाशके सम्बन्ध में बातचीत करवाई गई है। बेटा राजीव जिज्ञासुकी तरह अपने पितामे मन्त्र कुछ पूछना जा रहा है और पिताजो बड़े प्रेमवे बताते जा रहे हैं। शुरूमें भगवान शान्तिनाथके पुण्यधाम हस्तिनापुरके महत्व तथा ऐतिहासिकता पर प्रकाश डाला है। और बादको भगवान की धमसाधना, मोक्ष, महान बनने का साधन, हस्तिनापुरमें मेला जुड़ने का कारण, जीवात्माका साक्षात्कार, रेशमके कपड़ोंसे हानि, धनरथ नामक राजाका परिचय, लरके पुत्र मेघरथ व दृढ़रथ द्वारा मुगोंको लड़ाया जाना, उन मुर्गों के पूर्व उन्मके संस्कारोंको बताना, आजकल के शासनको हिंसक नीति, राजा धनरथका वैराग्य धारण करना, पशुलिकी कुरीतिको भयंकरता, मेघरथके जीवनका शान्तिनाथ होना, देवों द्वारा शान्तिनाथ तीर्थ करके जन्मोत्सव मनाना, बादको राजकुमार बनने, आदर्श राजाकी स्थापना करने, तपस्याकं लिये बनको जाने तथा अंतमें महान बनकर अमरत्व प्राप्त करने की बातें बताई गई है। तीर्थकरकी जीवनीसे साथ साथ आधुनिक समस्याओं तथा कुरीतियों पर बीच बीच में प्रकाश डाला गया है। सूक्ष्म दृष्टि से देखें तो बाबूजी जहां तीर्थ कर की जीवनीको लेकर चले हैं वहां वर्तमान वातावरणमें पनपनेबाली बुराईयोंको भी उसमें नत्थी करके पाठकोंको छोड़नेकी प्रेरणा दी है। क्रोध और राग द्वेषको बदलेसे नहीं वरन् प्रेमसे जीतने की शिक्षा सीखिये। वैरसे वैर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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