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________________ (७८) कालेज जयपुरने तो यहां तक लिखा है "प्रस्तुत पुस्तकमें अहिंसाके विश्वव्यापी प्रभावका जो विवेचन है वह पाठकको अपनी बोर खींचता है और अहिंसाके प्रति उनकी आस्था उत्पन्न करता है। इसमें ऐतिहासिक एवं व्यापक दृष्टकोणसे अहिंसाका वर्णन है। न केवल भारतवर्ष में अपितु विदेशोंमें भी अहिंसाकी जो प्रतिष्ठा हुई है उसका ऐतिहासिक विवेचन है। संसारके विभिन्न प्रख्यात धर्मों में अहिंसाको शीर्ष स्थान प्राप्त हुआ है। श्री बाबू कामताप्रसादजीको धन्यवाद है कि उन्होंने भगवती अहिंसाके प्रचार में यह ोगदान देकर दूसरोंको भी इस ओर आकृष्ट होने की प्रेरणा दी है।" गिरिनार-गौरव सन् १९५५ में लिखित ६६ पृष्ठीय पुस्तक गिरिनार तीर्थक्षेत्रको गौरव गरिमाको प्रकट करती है। इस पुस्तकके लिये बाबू कामतापमादजीने बड़े हो अथक परिश्रमसे विदेशी विद्वानोंके संस्मरण, ब लिखत पुस्तके, शिलालेख, श्वेताम्बर व दिगम्बर जैनोंके ग्रंथ, हिन्दू शास्त्र तथा अन्य उपयोगी ग्रंथों का अध्ययन करके इसकी रचना को। इसीलिये इतिहास प्रेमियों, तथा जैन समाजके लिये बहुत बड़ोदेन सिद्ध होतो है। जहां एक ओर इतिहासको झलक है वहीं दूसरी ओर भक्ति, प्रेम और श्रद्धाका खजाना भी है। जिस तरह कोई गूगा व्यक्ति मिठाई खाकर भी उसका वर्णन नहीं कर सकता, वैसे ही धर्म प्रेमी व्यक्ति पढ़कर आनन्दसागर में डूबता और उतराता दिखाई पड़ता है पर उस आनन्दका वर्णन करने में असमर्थ पाता है। प्राचीन तीर्थंकरों तथा पूज्य आचार्य और सन्त महात्माजोंने साधना और तपके दिये प्रकृतिके रमणीय स्थलगेको चुना था, उनमें रहकर ही अपने जीवनको साधना व त्यागका पाठ विश्वको Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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