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और विवेचन में प्रत्येक मतवाले महात्माओं द्वारा अहिंसासत्वको सिद्ध किया है। पुस्तक पढ़नेके बाद अहिंसक आत्मा हो सकता है । ...... प्रत्येक भाषा में अनुवाद होना चाहिये ।"
डॉ० दशरथ शर्मा दिल्ली विश्व विद्यालयने भूमिका में लिखा है " ज्यों ज्यों प्राणी अपने हिंसाजन्य विचारों और कर्मोंसे दुःख पाता है त्यों त्यों उसे भान होता है कि अहिंसा में श्रद्धा अहिंसा तत्वोंके ज्ञान और अहिंसाका सम्पर्क आचरण हो विश्वशान्तिका एक मात्र मार्ग है। श्री कामताप्रसादजी इसी अहिंसा के पुजारी और उपदेशक हैं। आपका लक्ष्य अत्युत्तम है और ' अहिंसा और उसका विश्वव्यापी प्रभाव' नामकी इस पुस्तककी रचना उम्रलक्ष्यको साधनाके ढिये आपके बहुतसे उपायों में से एक है । पुस्तक अपने ढंगकी एक ही है। अहिंसा के सिद्धान्तोंके सार्वत्रिक असारको इतना उत्तम तात्विक और ऐतिहासिक विवरण प्रस्तुत कर श्री कामताप्रसादजीने ऐतिहासिक और धार्मिक साहित्य की एक बहुत बड़ी कमी पूर्ण की है। "
मानव स्वभावका अहिंसावृत्ति से सम्बन्ध अहिंसा और हिंसाके तात्विक विचार भारतीय संस्कृति में अहिंसाका महत्व, अफगानिस्तान, अरब, ईरान, फिलिस्तीन आदि मध्य रशियावर्ती देशों में, अफ्रोका, अबीसीनियां, इथोयोपिया, मिश्र, तुर्किस्तान, यूनान, यूरुप, अमेरिका, चीन, जापान, तिब्बत, बर्मा, लंका आदि देशों में अहिंसा की प्रगतिको पूर्ण विवेचना की गई है। पुरातत्वको अहिंसा से जोड़ते हुये आजके जीबनमें अहिंसाको आवश्यकता और विश्व शांतिके आधार स्तम्भपर भली भांति विचार प्रकट किया गया है। देश विदेश के महापुरुषों तथा धर्म ग्रंथोंके उद्धरणोंसे यह पुस्तक भरी पड़ी है। मांसाहारका खुले रूपसे ऐतिहासिक तथा वैज्ञानिक तत्वोंके आधारपर विरोध किया गया है । श्री पं० चैनसुखदास न्यायतीर्थ अध्यक्ष दिगम्बर जैन संस्कृत
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