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भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध इस ८ पृष्ठीय ट्रेक्टमें दोनों पुरुषोंका तुलनात्मक अध्ययन कया गया है। जिस पुस्तकको मैं खोलता हूं उसमें बड़ी अजीब अजीब बातें दिखाई पड़ती हैं। उनका अध्ययन खड़ा गजबका था, सारा जीवन ही साहित्य सेवा, शोध कार्य में लगानेपाला दूसरा व्यक्ति हमें कोई दिखाई ही नहीं पड़ता। इस पुस्तकको देखनेसे यह बात स्पष्ट होती है कि भगवान बुद्ध स्वयं पहले जैन मुनि थे और उनकी दिनचर्या दिगम्बर मुनिकी दिनचर्यासे मिलती जुलती थी। पर जब वे इन कठोर नियमोंका पालन न कर सके तो नया मार्ग ढूढने लगे और बोधि वृक्षकी छायामें ज्ञान प्राप्त कर 'मध्य मार्ग'का हो सबको उपदेश दिया ! एक बड़ी अजीब बात और यह देखने को मिलती है कि दोनों महापुरुष एक ही क्षेत्रमें प्रचार कार्य करते थे, फिर भी आपसमें कभी मिल न सके ! जैन ग्रन्थ प्रवचनसार, योगसार, सूत्रकृतांग तथा दश वैकालिक से बौद्धग्रन्थ धम्मपद, दीधनिकाय, व महावग्गके उपदेशों तथा सिद्धांतोंसे तुलना भी की गई है।
अहिंसा और उसका विश्वव्यापी प्रभाव सन् १९५५ में १३२ पृष्ठकी यह प्रभावशाली पुस्तक बाबूजी द्वारा लिखित प्रकाशित हुई जो जनसमाजमें ही नहीं वरन् मानवजातिमें विशेष लोकप्रिय सिद्ध हुई। श्रीमान् १०५ क्षुल्लक गणेशप्रसादजी वर्णो ने इस पुस्तकके बारे में जो लिखा है उससे इसकी महत्ता प्रकट हो जाती है "मेरी सम्मति है कि इस पुस्तक का प्रत्येक मनुष्य अध्ययन करे जिससे उतने काल स्वच्छ उपयोग हे ......इसमें अहिंसातत्वके ऊपर उत्तम विवेचन है
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