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मानव जीवन में अहिंसाका महत्व
सन् १९५४ में ४४ पृष्ठीय इस पुस्तकका प्रकाशन हुआ । इसमें मानव जीवनमें अहिंसा के महत्वको स्पष्ट किया गया है । मानबको अहिंसा से सम्बन्ध, अहिंसाका स्वरूप, और जीवन व्यवहार में अहिंसाका प्रभाव बताया गया है। लोकके महापुरुष भगवान महावीर, वैदिक ऋषिगण, भगवान कृष्ण, तुलसी, कबीर, नानक, पिहित गुरु नामक यूनानी तत्ववेत्ता, ईरान के महात्मा जरदस्त, हजरतम्मा, रसूल्लूका, हजरत चौक, शेखसादी, बर्नर्डशा, जर्मन के कवि गेयटे, अमेरिकन तत्ववेत्ता रस्किन, आदि सभी ने अहिंसात्वको भली-भांति समझा और अपनी वाणी तथा व्यवहार के द्वारा सबको उस आदर्श मार्गपर चलने की प्रेरणा दो । बाबूजीने बड़ी बुद्धिमानीसे अनेक विचारकोंकी बात कही है ।
राष्ट्रीय जीवनको स्वस्थ बनानेके लिये भी अहिंसाकी कसौटी से ही विचार किया है । स्वास्थ्य खराब होने के कारण, शक्तिशाली बनने के उपाय, विभिन्न खाद्य पदार्थ तथा संयम जैसी आवश्यक बातोंको समझाया है। मांसाहारको पूरी तरह से अप्राकृतिक और अग्राह्य बताया है। शाकाहारको बिदेशी चिकित्सकों तथा देशी शरीर शास्त्रियोंके विचार मन्थन से ही उपयोगी सिद्ध किया है । साथ ही राम, कृष्ण और बुद्धके उन उपासकोंको विकारा भी है जो मांसाहार करते हैं ।
स्वाधारण जनताको जैनियों के जीवन से शिक्षा ग्रहण करने के लिये बाबूजीने कहा है- "जो लोग अच्छा स्वास्थ्य और सुखी बनना चाहते हैं उन्हें अहिंसा धर्मका पालन करके शुद्ध शाकाहार करना चाहिये | जैनोंका जीवित उदाहरण पाठकों के सन्मुखः है, जैन लोग अहिंस्रोपजीवी और दयालु प्रकृति अज्ञात कालसे ही रहे हैं।"
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