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________________ (७४) जैसे हम वैसे सत्र पाणी अतः प्रेम की सीखें वाणी कुत्सित हिंसा दूर भगाकर मैत्री भाव जगायें। जैनधर्म परिचय सन् १९५३ के दिसम्बर मास में पूर्वीय अफ्रीकाके केनिया प्रान्त के अन्तर्गत मोम्बासा नगरमें आर्यसमाज द्वारा एक सर्वधर्म परिषदका आयोजन हुआ जिसमें भारतसे श्री सोमचन्द लाघामाई शाह जेन धर्मके प्रतिनिधि बनकर वहां गये वहीं यह पुस्तक जैन धर्मके परिचषके सम्बन्धमें वहां सुनाई । इसमें जैन धर्मका ठीक स्वरूप सबके सामने रखा है ताकि सभी धर्मों के व्यक्ति यों को इसके बारेमें पूर्ण जानकारी मिल सके। ___ जैन तीर्थंकरोंको वैज्ञानिक और सरल विचारधारा, धर्म तत्वकी सबके लिये समानता, तत्वज्ञान और धर्मके क्षेत्रमें जैन धर्मका स्थान, जैन धर्मकी मौलिक मान्यताएं, प्राचीनता, आदि तीर्थंकर ऋषभ ऋगवेद और पुरातत्व के प्रमाण, तथा अन्य सभी तीर्थंकरों का वर्णन संक्षिप्त में किया गया है। जैन संस्कृति, साहित्य और कलाका देश विदेशमें प्रचार, तथा विभिन्न धार्मिक पर्यों का उल्लेख किया है। जैनियोंकी विशेषता बाबूजीने इस प्रकार बताई है-" जैन बननेके लिये सबसे पहले अहिंसक शाकाहारी बनना पड़ता है। दुनियां में जैन ही वे लोग हैं जिन्होंने कभी मांस, मदिरा और मधु नहीं खाया है। इसीलिये वे सदा शान्तिके रक्षक और सुखके विस्तार करनेवाले रहे हैं। अन्य धर्मोंने भी अहिंसा और दयाका उपदेश दिया, परन्तु उसे अपने धर्मका मूल आधार नहीं माना। " Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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