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पर्वकी कथाएं
" पर्वकी कथाएं" नामक ६४ पृष्ठीय पुस्तक बाबूजी द्वारा लिखित है। इस पुस्तकको देखकर पूज्य वर्णोजी महाराजने कहा था " आपके द्वारा जो कथायें लिखी गई हैं, यदि उनका पाठ ठीकसे किया जाय तो अपनेको संसार-जालसे पृथक् रक्खा जा सकता है" । श्रीमान १०८ पूज्य मुनि समन्तभद्रजी महाराजने शुभाशीर्वाद के साथ अपने विचार इस प्रकार प्रकट किये "जैन सिद्धान्त के रहस्योंको सुलभ रीतिसे सबकी समझ में आवे इस प्रकार से जो आपने सुबोध और सरल हिन्दी भाषा में लिखनेका कष्ट उठाया है, यह अतीच अनुकरणीय हैं ।
सन् १९५३ में भाई हरिश्चन्द्रने अनन्तत्रतके उद्यापन में व्रतोंकी कथायें छपवाकर जब वितरणकी इच्छा प्रकट की तो बाबूजीने बहुत शीघ्र ही लिखकर उन्हें दीं। इन कथाओंके माध्यम से अध्यात्मवाद और कर्म सिद्धान्तको बताया गया है । साथ ही यह भी स्पष्ट किया है कि इन कथाओं में वास्तविक रूपसे आन्तरिक महत्ता क्या है ! सोलहकारण, दशलक्षण, सुगन्धदशमी, चौबीस्री, और अनन्त व्रत कथाओंका वर्णन किया है।
श्रद्धा, विवेक, क्षमा, बीरता, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, अकिञ्चन्य और ब्रह्मचर्य जैसे विषयों पर बहुत कुछ लिखा गया है। प्रत्येक बात मननीय एवं अनुकरणीय है । पर्यूषण पर्व क्षमा और वीरताका सन्देश देता है । इस पके सम्बन्ध में महत्ता इस प्रकार है - "गन्ने की पोईको भी पर्व कहते हैं ।" पोईको निचोडिये तो बहुत सारा मोठा रस निकट आवे । ऐसे ही पर्युषण पर्व पर स्व-परका, अपने-परायेका और भीतर बाहरका सारा लेखा-जोखा और सार-संभाल की जाती है ।
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