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________________ अशासकीय सभी भवनों तथा स्थलोंका वर्णन किया है। एक ऐसा खाका तैयारकर दिया है जो वहां जाने पर बड़ी सुविधासे सभी कुछ देख सकता है। खंडित प्रतिमाएं, रामेश्वर मन्दिर, सिद्धपीठ, कपिल कुटी, द्रौपदी कुण्ड, कालेश्वरका मन्दिर, कंपिलवासिनी देवीका मन्दिर, आदिका अच्छा वर्णन किया है । सर्वश्री विमलनाथ, महावीर, चन्द्रप्रभु, पाश्वनाथ, आदिनाथ अरहंत, आदि मूर्तियों का आकार और स्थापना समय आदिकी ओर भी संत किया गया है। प्रयाग संग्रहलायके अध्यक्ष श्री सतीशचन्द्र काला एम० ए० ने इस निबन्धको पांडित्य पूर्ण बताकर विद्वत् समाजमें विशिष्ट आदर की कामना की है। कम्पिलाजीकी पूजा यद्यपि यह छोटीसी पुस्तक केवल ८ पृष्ठकी है पर कम्पिला तीर्थस्थली में जानेवाले श्रद्धालु भक्तोंके लिये बड़ी उपयोगी है, वहां जाकर किस तरह पूजा अर्चना की जावे ? इसकी सारी विधि, स्तुति, दोहे, सोरठे, मंत्र और पद हैं। इस पुस्तककी आवश्यकताके सम्बन्ध में बाबूजीने प्रस्तावनामें लिखा है___ "जैन तीर्थों के पूजासंग्रहमें तेरहवें तीर्थंकर विमलनाथस्वामीके गर्भ-जन्म-तप और ज्ञान कल्याणकोंसे पवित्र हुए कम्पिला तीर्थको पूजा न देखकर जीमें पाया, यह कमी पूरी होनी चाहिए।" फिर इस कमी को पूरा किया गया। अज्ञानान्धकारको नष्ट करके ज्ञान को दिव्य ज्योति जलानेको सामनेसे आरतो सजाते समयका एक पद देखिये : दिव दीप महिमा ज्ञानमय जिन, तेजसे दर्शाईये । अज्ञान तमका नाश होवे, बिमल ज्योति प्रकाशिये ।। जय विमल तीरथ विमठ पद दे, जजडं मन वच कायसे । मम विमल मतिकर विमल, सुखलह सुकृत भाव भराईके। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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