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________________ (७) दो शब्द वैसे मेरी इच्छा बाबूजीको अभिनन्दन प्रन्थ भेंट करनेकी थी, इसी भावनासे मैं मई ६४ के प्रथम सप्ताहमें मि 1 भी था पर अबस्थताके कारण मैंने इस बारे में कोई बातचीत नहीं की, केवल उनके स्वास्थ्य तथा प्रचारकार्य पर ही विचार विमर्श होता रहा। और यही मोचा कि बाबूनीके स्वस्थ हो जाने पर इस तरह की योजना बनाऊंगा। पर समय बड़ा बलवान होता है। मेरी यह इच्छा केवल इच्छा ही बनी रही और १७ मई ६४ को तो वे इस संसारसे नाता तोड़ सदेवके लिये चले गये। पहले तो उनकी मृत्युकी सूचना पर सहसा विश्वास न हुआ, और ऐसी सनसनीपूर्ण खबर पाकर उनके चि० भाई वीरेन्द्र जैनके पास दौडा दौडा आया तब रास्ते का मारा बाताबरण शोकाकुल देखकर अत्यंत दुःख हुवा। ___महापुरुषोंकी चिरस्थायी स्मृति उनके श्रेष्ठ कार्य ही होते हैं, उनके द्वारा संस्थापित ब. वि० जेन मिशन, अहिंसावाणी तथा बाइम ओफ अहिंसा जैसी मासिक पत्रिकाएँ तथा सैकडों हिन्दी व अंग्रेजी की पुस्तके युग युगान्तरों तक उनकी कीर्ति इस संसार में फैलाती रहेंगी। अनेक लोगोंने उनके स्मारक बनाने की इच्छाएं मी प्रकट की। ____ मैं उन्हें कैसे श्रद्धांजलि देता, मेरी समझ में तो एक बात हो बाई कि मैं एक पुस्तक अहिंसाकी दिव्यमूर्ति और उद्भट विद्वान डॉ. कामताप्रसाद जैनके व्यक्तित्व तथा कृतित्व पर उनकी पुण्यतिथिसे पूर्व लिखकर साहित्य-जगतको भेंट कर दू। जहां चाह होती है वहीं राह मिल जाती है। जून ६४ में ही इस पुस्तक का अधिकांश भाग तैयार थी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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