SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ८ ) हो गया। पुस्तकोंको जुन नें, तथा मिशन पुस्तकालयकी अनेक पत्रपत्रिकाओंसे सहायता लेने में प्रसिद्ध साहित्यकार तथा तरुण कवि श्री बीरेन्द्रप्रसाद जैनने हमें खूब सहयोग दिया है। वे अपने ही हैं, अतः धन्यवाद देने में तो बड़ा संकोच होता है पर उनका मैं आभारी तो सदेव हूंगा ही । कुछ पुस्तकों की तलाशके लिये जयपुर आदिके पुस्तकालय में खोजबीन की पर कोई लाभ न हुआ इस लिये देरी होती चडी गई। ब्रादको अक्टूबर ६४ में फिर जैन मिशन अलीगंज के विशाल पुस्तकालय की खोजबीन की तो ८-१० पुस्तकें पुन: मिलों जिससे यह पुस्तक पूर्णं हुई । पुस्तक पूर्ण हो भी नहीं पाई थी कि स्व० बाबूजी की अनेक पुस्तकोंके प्रकाशक - श्री मूलचन्द किसनदासजी कापडिया, संपादक वनमित्र, सूरत (गुजरात) ने इसके प्रकाशनकी व्यवस्थाका मार ले लिया और हमारे संकल्पको पूर्ति जो एक वर्ष में ही पुस्तक लिख कर धर्म प्रेमी जनताको देनेकी थी, श्री कापडियाजीकी कृपासे पूर्ण हुई अब यह पाठकों के हाथमें है । उद्भट विद्वान डॉक्टर साहब की जीवनगाथा लिखना मुझ जैसे साधारण व्यक्तिके बशकी बात नहीं थी, उनके कार्य और प्रशंसाको शब्दों में वान्धना भी संभव नहीं था, फिर भी जैसेतैसे अपनी बाल- बुद्ध से प्रयास किया है। इसमें मुझे कहां तक सफलता मिली है आप जानें। एकवार पुन: बाबूजी की दिवंगत आत्माको शान्तिकी कामना करते हुवे पाठकोंसे यह विनम्र निवेदन करता हूं कि यदि उनके जीवनसे कुछ शिक्षा लें तो मानवजीवन की सार्थकता है । अलीगंज (एटा) दि० २६ /१०/६४ Jain Education International शिवनारायण सक्सेना | For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy