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इसमें डॉ. कामताप्रसादजी कृत ६०-७० ग्रंथोंकी सुन्दर समालोचना लेखकने इस प्रकार की है कि जिससे इन ग्रंथों का खासा परिचय मिल जाता है। __ग्रंयके अंतमें डॉ० कामताप्रसादजीके बियोग बाद मिली हुई श्रद्धांजलियां भी प्रकट की है, जिन्हें पढ़कर पाठकों को मालूम होगा कि हमारे मित्र डॉ. कामताप्रसादजी कैसे महान कार्यकर्ता + जैन समाजके कैसे महान सेवक थे। हमारे पाठकोंको इस प्रत्यको पढ़कर डा० कामतापसादजीके गुणों का अनुकरण करना चाहिये भी ही हमारा यह प्रयास सार्थक हो सकता है।
इस ग्रन्थको कुछ प्रतियां वित्र याथें भी निकाली गई हैं। अतः प्रचारार्थ आमसमाज में बांट नेके लिये यह ग्रन्थ बहुत उपयागी होगा। बीर सं० २४९१ ।
-निबेदक : आश्विन सुदी ८
मूलचंद किसनदास कापडिया ता. २-१०-६५ सूरत. )
प्रकाशक
विषय-सूची १-जन्म व परिचय, २-वंशवृक्ष ३- कलमके धनी, ४-कुशल गृहसंचालन ९-१२ ५- जनसेवकके रूपमें ६ --राष्ट्र य व तरराष्ट्रीय सन्मान ७-यशस्वी संपादक, ८-साहित्यसेवाके क्षेत्रमें २२-२६ ९-प्रकाशित ग्रंथों का परिचय १०-महान नेताका महाप्रयाण ११-डॉ० कामताप्रसादजीके निधन पर शोक व श्रद्धांजलियां १२७ १२--विश्व-दृष्टिमें डॉ० कामताप्रसादजी (हिंदी । अंग्रेजी) १२९
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