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(५) आपके जैसे अहिंसा जैन धर्म सेवकका ६५ वर्षकी अवस्था में ही स्वर्गवास हो जानेसे एक रीत्या जैन समाज अनाथ हो गया है। आपका अहिंसा प्रचार कार्य अकेले हिन्दमें ही नहीं लेकिन सारे विश्वमें पत्रव्यवहारसे तथा दोनों पत्रों द्वारा कई व मचित्र तीर्थकर विशेषांक निकालकर तो दि० जैन समाज में एक अद्भुत प्रचार श्री तीर्थकरकी वाणीका उनके मचित्र जीवन चरित्र सहित किया है, जिस प्रणालीको आपके सुपुत्र भाई वीरेन्द्रकुमार जैन बी० ए० ने भी चालू रखा है, यह प्रकट करते हुए हमें बड़ा हर्ष हो रहा है, तथा आशा है कि भाई वीरेन्द्रकुमार पिताजीकी तरह हो अहिंसा जैन धर्म प्रचार-कार्यमें सतत् सेवा देते ही रहेंगे।
इस डॉ. कामताप्रसाद जैन प्रन्धके लेखक हैं-आपके विद्वान मित्र-श्री शिवनारायण सकसेना एम० ए० अलीगंज । आपने महा परिश्रम पूर्वक यह ग्रन्थ लिखकर अपने सहृदय मित्रका ऋण पूर्ण किया है।
आपने इन ग्रन्थको तैयार करके सपुत्र भाई वीरेन्द्रको दिखाया व प्रकाशनार्थ निवेदन किया तो भाई वीरेन्द्रने कहा कि इसे मैं प्रकट करूं इसने तो यह अच्छा हो कि कोई दूसरे मित्र व अनन्य सेवक प्रकट करें तो सोनामें सुगन्ध हो सकता है।
अतः आप दोनोंने हमसे पत्र व्यवहार किया तो हमने इसे प्रमन्नता पूर्वक प्रकट करने की तथा इसे 'जैनमित्र' साप्ताहिकपत्रके ग्राहकों को भेट स्वरूप देने का प्रबंध करने की स्वीकृति दी और इसकी प्रेम कापीको हमने सूरत मंगालिया था। जिसको अन्य कार्यवशात् एक वर्ष हो गया है तो भी बाज वह "डॉ. कामताप्रसाद जैन' प्रन्थ हम प्रकट कर रहे हैं व मित्र के ६६ वें वर्षके ग्राहकोंको भेट कर रहे हैं।
इस ग्रन्थका एक२ पृष्ठ पढ़ने ब मनन करने योग्य है। तथा
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