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________________ अंग बाजीने बताया है " वीर्थ बह विशेष स्थान है जहां पर किमी साधकने साधना कर के भात्मविद्धिको प्राप्त किया है। वह स्वयं तारणतरण हुमा है और उस क्षेत्रको भी अपनी भवतारण शक्तिसे संस्कारित किया है। धर्म मार्गके महान प्रयोग उस क्षेत्रमें किये जाते हैं--मुमुझी जोव तिलतुष मात्र परिप्रह त्याग करके मोक्ष पुरुषार्थके माधक बनते हैं, वे वहां पर आसन मांडकर तपश्ररण, ज्ञान और ध्यानका अभ्यास करते हैं अन्तमें कर्म-शत्रुओंका और राग-द्वेषादिका नाश करके परमार्थको प्राप्त करते हैं।" ___ अतः ऐसे सुसंस्कारित्व पवित्र देव भूमिमें जब हम सब सच्ची भावना, पवित्र आंकाक्षा और निर्मल हृदय लेकर जावें तो अवश्य समार्ग पर चलने की प्रेरणा लेकर आ सकते हैं। शरीरको मलमल कर साबुनसे धोने, सुगन्धित तेल-इत्र लगाने, सुन्दर चटकीले-मटकोले वस्त्र पहनने से शारीरिक सौन्दर्यमें भले ही वृद्धि हो जावे पर ध्यान रहे कि जब तक मानसिक और हार्दिक सौन्दर्य में वृद्धि नहीं होती तब तक कुछ भी बननेवाला नहीं है। . तीर्थों में जाकर अन्तःकरम पवित्रतासे ओत प्रोत हो जाता है, भक्ति और श्रद्धाको तरेंगे हिलोरे लेने लगती हैं, प्रेमका ज्वार उठने लगता है और स्वयं ही अपने मार्गको निश्चित कर अगले तीर्थों की यात्रा जारी रखता हुमा घर लौटता है। तोर्थका माहात्म्य सारांशमें बाबूजीने इस प्रकार बताया है__"यात्री अपना मारा समय धर्म पुरुषार्थकी साधनामें ही लगाता है। वह तीर्थ-स्थानपर रहते हुये अपने मनमें बुरी भावना उठने ही नहीं देवा, जिससे वह कोई निन्दनीय कार्य कर सके। उस पवित्र स्थानपर यात्रीगण ऐपी प्रतिज्ञाएं पड़े हर्षसे लेते हैं जिनको अन्यत्र में शायद ही स्वीकार करते।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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