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________________ (६३) प्रचारक थे। इस तरहकी अनेक शंकाओंका समाधान इस पुस्तकमें मिलता है । सैकड़ों पुस्तकों व धार्मिक ग्रन्थोंके गहन अध्ययन के बाद इस पुस्तकको रचना हुई है। जैन तीर्थ और उनकी यात्रा डॉ. कामताप्रसाद जैन द्वारा लिखित "जैन तीर्थ और उनकी यात्रा” नामक पुस्तक पौने दो सौ पृष्ठों की है। बैसे तो यह पुस्तक भारतवर्षमें दिगम्बर जैन परिषद परीक्षा बोर्ड के लिये ही लिखी गई थी पर केवल उत्कृष्ट पुस्तक छात्र छात्राओंके लिये ही उपयोगी नहीं वरन सर्व साधारण जनता लाभान्वित हो सकती है। जेनधर्मके सभी तीर्थो का ऐतिहासिक उल्लेख किया गया है। ___पुस्तकका प्रारम्भ 'तीर्थ' शब्दकी व्याख्यासे किया गया है, तीर्थका संकुचित और विस्तृत अर्थ भी समझाया गया है। " 'तृ' धातुसे 'थ' प्रत्यय सम्बद्ध होकर 'तीर्थ' शब्द बना है। इसका शब्दार्थ है-'जिसके द्वारा तरा जाय। इस शब्दार्थको ग्रहण करनेसे 'तीर्थ' शब्दके अनेक अर्थ हो जाते हैं। जैसे शास्त्र, उपाध्याय, उपाय, पुण्यकर्म, पवित्र स्थान इत्यादि परंतु लोकमें इस शब्दका रूढार्थ 'पवित्र स्थान' प्रचलित है।" __ बीच बीच में अपनी बातकी पुष्टि करने लिये पुराण, श्रावकाचार, श्री गोमट्टसार, तथा चारित्रसारके उदाहरणोंका भी सहारा लिया गया है। जैनधर्मका उद्देश्य, सच्चे सुखकी प्राप्तिके साधन, महान बननेकी इच्छा, तीर्थक्षेत्रों का महत्व, आत्मोन्नतिके लिये तीर्थ यात्राकी आवश्यकता, तीर्थ बन्दना, तीर्थयात्राके नियम, तीर्थयात्रासे निष्फलताके कारण, सामाजिक उन्नतिमें तीर्थोका योगदान, स्वदेशके गौरवमें वृद्धि, भारतीय इतिहासकी पर्याप्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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