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________________ (६१) भगवान महावीर भगवान महावीर नामक पुस्तक ३६६ पृष्ठकी लिखी गई उत्कृष्ठ पुस्तक है जो प्रथम बार सन् १९५१ में प्रकाशित हुई थी। इससे पूर्व भगवान महावीरका सम्पूण विस्तृत जीवनचरित्रका अभाव था, छुटपुट लेख तथा छोटा छोटा पुस्तकें मिलती अवश्य थी पर प्रमाणिक ग्रन्थकी कमी खटकनेवाली थी। डॉ० कामताप्रसाद जैनने आगे बढ़कर इस कार्यको अपने हाथमें लिया और आशासे अधिक सफलता प्राप्त हुई। जम्मसे लेकर अन्त तकका पूरा जीवन परिचय तो इसमें मिल ही जाता है फिर भी भगवान महावीरके जीवनको प्रमुख शिक्षाओंका विवेचन भी देखने को मिलता है। मानव और पशुमें प्रमुख अन्तर जो हमें दिखाई पड़ता है वह बुद्धि और विवेकका हो है। पशुका मानसिक स्तर निम्न श्रेणीका होता है वह अपनी ही सदैव सोचा करता है पर मनुष्य सोचने और विचारनेको शक्तिसे विभूषित होता है फिर क्यों न अपनी बुद्धिका सदुपयोग करे ? महावीरने अपने जीवन में प्रतिपलका ठीक ढंगसे उपयोग किया । इच्छाओं पर विजय प्राप्त करना, उदारता, समयानुकूल परिवर्तनके लिये तैयार रहना, नारी हितको लोक-व्यापी बनाना, दृढ़ता और उद्देश्य सिद्धिके लिये एकाग्रता, क्रियावाद और अहिंसा जैसे अनेक गुण भगवानमें थे, इन गुणोंसे सीखनेकी प्रेरणा लेने पर बाबूजीने विशेष जोर दिया है। निस्संदेह भगवान महावीर लोककी एक महान विभूति थे। उन्होंने लोकके सम्मुख उसकी पूर्णताका आदर्श रक्खा । पूर्ण सुख मानवके भीतर हैउसके बाहर नहीं। उसका विकास इन्द्रिय निग्रहसे होता है। टके खर्च करके उसे कोई नहीं पा सकता न वह किसीकी खुशामदसे मिलता है। और न किसी बिरादरी या संबमें सम्मि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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