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(६०) किया है। इस नगरीके स्वनामधन्य राजा हिटदेवरायका शौर्यपूर्ण जीवनवृत्त भी दिया गया है। दुर्भाग्यसे इस शासकके सम्बंध में भारतीय साहित्यमें यथेष्ट विवरण उपलब्ध नहीं होता। __ जेन वीर सुहिलदेव विदेशी शासन चक्रको चलता न देख सके। सैयद सालारने जब देश पर आक्रमण किया तो सुहिलदेवको सहन न हुआ। वह अपने सभी भाइयोंको लेकर युद्ध क्षेत्र में जम गण। देश और धर्मकी रक्षाके लिये किया गया प्रण अत्याचारियों को निकालनेका पूर्ण हुआ, पर दुःखकी बात तो यह है कि ऐसे वीरोंका वर्णन इतिहासकारोंने छोड़ दिया। पर खोज खोजकर ऐसी घटनाओं का वर्णन बाबूजीने किया है ताकि वास्तविक स्थितिसे लोग परिचित हो सकें। बादमें राजा सुहिलदेवने शान्तिपूर्वक धर्म आराधना करते हुये राजकाज संभाला ।
उन दिनों साहित्यकी उन्नति, व्यापारिक विकास, आपत्तिविपत्ति, विभिन्न उत्पादित वस्तुओं, धार्मिक स्थिति, धनका सार्वजनिक संस्थाओंके लिये प्रयोग, तथा दुर्ग निर्माण जैसे कार्यों का वर्णन भी मिलता है। महेठ और महेठसे जो पुरातत्व सामग्री उपलब्ध हुई है उसकी सूची भी दी गई है। लेखक महोदय पुस्तक लिखनेका श्रम तभी सार्थक हुआ समझना चाहते हैं, जब लोग महिलदेवसे प्रेरणा लें। आह्वान करते हुये कहा है-"श्रावस्ती महान थी और उनके नरेश श्री सुहेलदेव भी महान वीर थे। उन्होंने हिन्दू भारतकी पतन होनेसे बचा लिया, वह हमेशा ही इतिहासमें देशभक्त समाजोद्धारकके रूपमें अमर रहेंगे।.........किन्तु सच्ची कृतज्ञता ज्ञापन तो उनके गुणोंको अपने जीवनमें उतार लेने में ही है। अतः आइए, संकल्प कीजिए कि आप वीरना सुहिलदेव सहश साहसी, बोर और धर्मदेश एवं जातिके संरक्षक और उद्धारक बनेंगे।"
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