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(५९) मूल्यांकन कर सकेंगे। उन्होंने लिखा है, "हिन्दी जैन साहित्यकार संक्षिप्त इतिहास, हिन्दी काव्य परंपराके सम्बन्धमें हमारी जान. कारीको कई गुना बढ़ा देनेवाली है।......इस पुस्तकमें आप पायेंगे कि कैसे अपभ्रंशके माध्यमके द्वारा जैन कवियोंने आजकी इस हिन्दीको अंकुरित किया और उस अंकुरको सींच-सौंचकर कैसे उन्होंने बात वृक्ष बना दिया ।"
श्रावस्ती और उसके नरेश सुहल देवराय
८६ पृष्ठीय यह पुस्तक सन् १९५० में प्रकाशित हुई। इसमें बाबूजीने श्रावस्तीकी झांकी, उसके अवशेष, श्रमण संस्कृति, तथा राजवंशोंका वर्णन किया गया है। श्रावस्ती प्राचीन भारत के उन नगरों में से एक है जहाँ हिन्दू बौद्ध और जैन संस्कृतिका विकास हुआ। इसके आसपास जनरल कनिंघम, वेनेट, होप, फोगल, दयारामसहानी, मार्शल आदिने जो खुदाई करवाई, उससे प्राप्त होनेवाले विहार, स्तूप, मन्दिर, प्रतिमाएं, मूर्तियाँ, इंटे, मुहरें, ताम्रपत्र, सिके, लेख आदि प्राप्त हुये हैं जिनसे प्राप्त होनेवाली जानकारीका लेखक महोदयने लाभ उठाया।
श्रावस्ती नामकरण होनेका कारण विभिन्न राजमार्गों तथा प्रसेनजित जैसे शासकका वर्णन भी पुस्तकमें मिलता है। श्री कृष्णदत्त बाजपेथी एम. ए. अध्यक्ष पुरातत्व संग्रहालय मथुगने इस पुस्तकके बारेमें अपने विचार इस प्रकार प्रकट किये हैं"इस महत्त्वपूर्ण नगरीके सम्बन्धमें श्री कामताप्रसादजी जैनने हिन्दीमें प्रस्तुत पुस्तक लिखकर एक कमीको दूर किया है ।
श्रावस्तीका संक्षिप्त क्रमबद्ध ऐतिहासिक वृतान्त देने के साथ बापने नगरी की स्थापना नामकरण आदि विषयों का भी विवेचन
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