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शान्तिनाथ चरित्र, राजमलका पिंगल शास्त्र, ज्ञानसागर द्वारा रचित चौबीस तीर्थंकरोंका गोत, आदि कवियों, लेखकों और उनकी साहित्यिक गति विधियोंका विस्तृत वर्णन छोटीसी पुस्तक में किया है ।
बाबूजीने इस
इतना ही नहीं कवि या साहित्यकारका काल, रचनाएं, भाषा तथा उनकी कविताओंके उदाहरण भी दिये हैं । रचनाओंके 1 प्राप्त होनेका स्थान, उनके रखनेके स्थानों तकका वर्णन किया गया है । हेमविजय नामके एक अन्धे कवि व विद्वान हुये हैं, कई ग्रन्थों की रचना इनके द्वारा हुई है । नेमिनाथ तीर्थंकर की स्तुति करते हुवे हेमविजयजी कहते हैं
।
घनघोर घटा उनई जुनई, इततै उततैं चमकी बिजली । पियुरे पियुरे पपिहा बितलाती जु, मोर किंगार करंति मिठो ! बिच बिंदु परें हग आंसु झरें, दुनि धार अपार इसो निकली । मुनि हेमके साहिब देखनकू, उग्रसेन उलो सु अकेली चली ||
इस प्रकार से जिन कवियोंका उल्लेख किया है उनने उदाहरण भी मिल जाते हैं । कविता ही नहीं गद्य लेखकोंने जो प्रगति की है उसके अनेक प्रसंग भी १७ वीं शताब्दो से अब तक देखनेको मिलते हैं । कविवर बनारसीदास, मुनि वैराग्यसागर, जगदीश, दोपचन्द, ज्ञानानंद, धर्मदास, टोडरमल और जयचन्द्र आदि गद्य लेखकों की पंक्तियों और उनकी भाषाओंके नमूने मौजूद हैं।
इस पुस्तक में केबल संक्षिप्त रूपसे यही कहा जा सकता है कि अत्यधिक शोध, अध्ययन व परिश्रम के बाद यह पुस्तक लिखी गई है। प्रत्येक पंक्ति बाबूजीकी विद्वत्ताका जोर जोर से बखान करती है। भारतीय ज्ञानपीठ काशीके सम्पादकने पुस्तक के प्रारंभ में निवेदन करते हुवे जो लिखा है उससे आप स्वयं ही पुस्तकका
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