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________________ (५४) हिन्दी जैन साहित्यका संक्षिप्त इतिहास बाबूजी द्वारा लिखित "हिन्दी जैन साहित्यका संक्षिप्त इतिहास" प्रथम बार फरबरी सन् १९४७ में प्रकाशित हुआ। इस पुस्तकसे पूर्व बिभिन्न कालोंका विभाजन किसोसे भी न बन पड़ा था। और न अपभ्रंश साहित्यमें होनेवाले क्रमिक परिवर्तनका उल्लेख अन्यत्र कहीं नहीं हुजा । इस लिये यह पुस्तक अपने ढंगकी प्रथम रचना ही कही जा सकती है। श्रीमान डॉ. वासुदेवशरणजी अग्रवाल एम० ए० डी० लिट्ने प्राक्कथनमें स्पष्ट लिखा है। हिन्दी भाषाका जो प्राचीन साहित्य विस्तार है उसके विषयमें बहुत सी नई सामग्रीका परिचय हमें इस पुस्तकके द्वारा प्राप्त होगा । अपभ्रंश-कालसे लेकर उन्नीसवीं शताब्दि तक जैन-धर्मानुयायी विद्वानोंने हिन्दी में जिस साहित्यको रचना की, लेखकने कालक्रमानुसार उसका संक्षिप्त परिचय इस पुस्तकमें दिया है। यद्यपि भिन्न भिन्न कचियों और काव्यों का मूल्य आंकने में उनके जो विचार हैं, उनसे पाठकों का भतभेद हो सकता है, परन्तु इसमें कोई सन्देह नहीं कि दो दृष्टियोंसे यह नई सामग्रो बहुत ही उपयोगी हो सकती है। एक तो हिन्दीके शब्दभण्डारकी व्युत्पत्तियोंकी छानबीन करने के लिये और दूसरे साहित्यिक अभिप्रायों (मोरिफ) और वर्णनोंका इतिहास जानने के लिये।" हिन्दी साहित्य पर धीरे धीरे शोधकार्य करना प्रारम्भ किया जिसमें सफलता भी मिडी। घर पर अकेले होनेके कारण यह सम्भव न था कि दीर्घकालके लिये बाबूजी बाहर जाते। अतः जयपुर, दिल्ली, आगरा, इन्दौर आदि प्रमुख स्थानोंके पुस्तकालयोंसे पुस्तकें मंगवाकर सैकड़ोकी संख्यामें घर पर ही पढ़ी और इतिहास Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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