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है। जैसे जैसे अच्छे गुणों को अपनाने की प्रेरणा दी जावे तो बुरेसे बुरे मनुष्यके जीवनमें परिवर्तन देख सकते हैं। इसी बातकी सार्थकता विभिन्न कहानियों, लेखों, विचारकों और ग्रन्थोंके माध्यमसे बताई हैं। सार रूपमें हम इस तरह कह सकते हैं
" मनुष्य मात्रका यह धर्म होना चाहिये कि यह जीव मात्रको आत्मोन्नति करनेका अबसर सहायता और सुविधा प्रदान करे-किसीसे भी विरोध न करे। विश्वप्रेमका मुल मन्त्र ही जगदोद्धारक है। निसन्देह अहिंसा ही परम धर्म है : ” इस ग्रन्थको सर्वप्रिय बननेका श्रेय श्री मूलचन्द किसनदास कापड़ियाने जैन साहबकी प्रशस्त लेखनीको ही दिया है। पुस्तकके मुखपृष्ठ पर अंकित पद्यकी चार पंक्तियां भी विशेष प्रभावशाली जान पड़ती हैं
ऊंचा उदार पावन, सुख शान्ति पूर्ण धारा यह धर्म वृक्ष सबका, निजका नहीं तुम्हारा ।। रोको न तुम किसीको, छायामें बैठने दो। कुल जाति कोई भी हो, संताप मेटने दो ।।
सा
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