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________________ (४९) है। जातिके स्थान पर योग्यताको विशेष महत्व दिया गया है। किसी भी जातिका कोई भी व्यक्ति हो धर्मकी ओर बढ़कर अपना कल्याण कर सकता है। शुरूमें तो जैनधर्मकी उदारताका बखान किया है और बादको विभिन्न बीस कथाएं उद्धारसे संबंधित दी गई हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि किस तरहसे पतितोंका उद्धार किया जाता है। अधिकतर कथाएं जैनधर्मसे ही सम्बन्धित हैं। धर्मको सार्वभौमिकता और धर्मके स्वरूपको स्पष्ट करते हुवे पाठकोंको बताया है कि जैनधर्म पतितोद्धारक भी है। चारित्रभ्रष्ट तथा शूद व्यक्तियों के लिये जो धर्मकी व्यवस्था है उसको भी सामने रखा है। मिरे हुओंको उठानेके सम्बन्ध में पं० गोपालदासजीका विचार, अथर्ववेद, पद्मपुराण, मझिमनिकाय, थेरीगाथा, मिलिन्दपण्ह आदि साहित्यके अंचलसे पुष्टि की है। यमपाल चाण्डाल, शहीद चण्ड चाण्डाल, चाण्डाली दुर्गन्धा, हरिकेश बल, सुनार और साधु मेतार्य, मुनि भगदत्त, माली सोमदत्त और अंजनचोर, कार्तिकेय, कर्ण तथा धर्मात्मा शूदा कन्याओं की कहानियाँ हैं जिनसे यह स्पष्ट झलक मिलती है कि उनका जीवन परिवर्तित कैसे हुआ ? पशुतासे मानवताकी ओर उनके चरण कैसे बढ़ सके ? पाप पंकसे निकलकर धमकी गोदमें बैठनेवाले अन्य ५ ब्यक्तियों की कथाएं भी मौजूद हैं जिनके नाम चिलाती पुत्र, ऋषि शैलक, राजर्षि मधु, श्री गुप्त, और चिलाती कुमार है। उपाली, वेमना, चामेक वेश्या, रैदास और कबीरका जीवन भी साधारण स्थितिसे उच्च शिखरकी ओर बढ़ते हुये देखा गया है। जिसने धर्मकी शरण ली, अध्यात्मके रसका पान किया वह क्यासे क्या बन गया। जाति, कुल, वर्ण आदिको पछता ही कौन है ? ईश्वरकी उपासना करनेवाला अन्तमें उसे ही प्राप्त होता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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