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(४७) साम्यवादको छोड़कर बिदेशियोंके साम्यवादको अपनानेकी कोई आवश्यकता भी नहीं है। कार्लमाक्सके साम्यवाद पर भारतीय साम्यवादका रंग चढ़ावें तो कुछ कारगत होसकता है। लेखकने राजकीय सहयोगकी भी आवश्यकता अनुभव को है सारे समाजको बहकनेसे बचानेके लिये यह करना होगा, "सबसे पहला कदम राज्यको यह उठाना उचित है कि हमारी शिक्षा पद्धति इस माध्यात्मिक साम्यवादके ऊपर निर्धारित की जावे । देशमें ठौर ठौर पर अहिंसा और सत्यकी व्यवहारिक शिक्षा देने की व्यवस्था हो, तभी यह देश सुखी और लोक सुखी हो सकेगा"
वीर पाठावलि सन् १९३५ में यह १२७ पृष्ठीय पुस्तक लिखी गई। इसमें १७ लेख व ऐतिहासिक जीवन गाथाएं हैं। पूर्वजों की गाथाओंको बिना सामने रखे वास्तविक रूपसे मूल्यांकन नहीं हो सकता। इस लिए इस पुस्तकमें धर्म भावना और विभिन्न महापुरुषों के यशस्वी जीवनका दिग्दर्शन इतिहासके आलोकसे कराया है। भगवान ऋषभदेव और सम्राट भरत, श्रीराम और लक्ष्मण, श्री कृष्ण और अरिष्टनेमि, भगवान पार्श्वनाथ, भगवान महावीर, मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त, सम्राट ऐल खारवेल, बीर संघको बिदूषियां, भगवान कुन्दकुन्दाचार्य, आचार्य-प्रवर उमास्वाति, स्वामी संमतभद्राचार्य और बीर मार्तण्ड चामुण्यगय, तथा श्री महाकलंकदेवका जीवन परिचय तथा प्रभावोत्पादक घटनाओंको समझाकर प्रेरणा उत्पन्न की है। धर्म और वीरता अहिंसा और सैनिक धर्म और पंथ तथा धैर्य नामक चार लेख हैं जिनमेंसे दो लेख 'धर्म और पंथ' तथा 'धैर्य' अन्य स्थानसे उद्धत किये हैं।
मात्मविश्वासकी मावश्यकता, दुर्गपनायें सताने पर कार्य में
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