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________________ है। अन्ध विश्वास और गन्दी बालोचनाको त्यागकर वास्तविक भारतीय साम्यवाद की ओर बढ़ना आवश्यक भी है और कर्तव्य भी। श्री अनन्तप्रसाद जैनने इसकी वास्तविकताको समझकर कहा है "उस आध्यात्मिक साम्यवादको जिसे ढाई हजार वर्ष पहले भगवान महावीर ने प्रकाशित किया, विद्वान मनस्वी लेखकने बड़ी पांडित्यपूर्ण गति पर सीधेसादे और सच्चे रूपमें हमारे सामने अपने इस लेख में बड़ी उत्तमताके साथ उपस्थित किया है जिसे मनन करना और आचरणमें लाना हमारा धर्म है " बाबूजीने भगवान महावीरको सच्चा साम्यवादी बताया है। पशु हों या मनुष्य सभी तो सामाजिक प्राणोके रूपमें हमारे सामने आते हैं फिर स्वयं जीवित रहने और दूसरोंको जीनेमें जात प्राकृत धर्मने अन्तर्गत ही आती है । आपने स्पष्ट हो बताया है कि आज जिस साम्यवादको चर्चा सुनते हैं उसका बाह्यरूप तो बड़ा सुन्दर है पर व्यवहार में जब उसे प्रयोगमें लाते हैं तभी उसका रूप बिगड़ जाता है। पर कर्मसिद्धान्तका जो अटल नियम पुराने समयसे चला आ रहा है उसे किस तरह समाप्त किया जा सकता है। कार्लमार्क्सने धर्मको अफीमका नशा बताया था उसका वास्तविक अर्थ, तथा व्याख्या भी की गई है। मार्क्सने अपने साम्यवादको केवल मानव तक सीमित रखा व जैन धर्म उससे भी आगे बढ़कर प्राणी मात्रमें समताको भावनाके दर्शन करता है। कालमार्क्सवाद भौतिकवाद तथा हिंसा और खून में विश्वास करता है। बाबूजीने स्पष्ट ही कह दिया है " यह ध्रव सत्य है कि महिमा और सत्यका आश्रय लिये बिना वे लोकमें समता, सुख और शांति स्थापित नहीं कर सकते।" तीर्थरों की विभिन्न शिक्षाएं, उनके जीवनके आदर्श तथा भावनिक ग्राम्यबादको सामने रखा है। अपने देश बार्श Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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