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________________ (४५) पञ्च रत्न सन् १९३३ में प्रकाशित यह ६२ पृष्ठीय पुस्तक “पश्च रत्न" सम्राट श्रेणिक बिंबसार, सम्राट महानन्द, कुरुम्बाधीश्वर, नृप बिज्जलदेव, और सेनापति वैचप्प कहानीके रूपमें है। इसमें सरल भाषामें कथाएं लिखी गई हैं, ताकि छोटे छोटे बच्चे भी इन कहानियोंसे प्रेरणा प्राप्त कर सकें। प्रसिद्ध साहित्यकार श्री जैनेन्द्रकुमारके शब्दोंमें भोजन के लिए जो नमकका महत्व है वही जीवन में कहानियों का महत्व है। इसके साथ ही बाबूजीके उद्योगको सत् तथा खासा सफल भी बताया है। इसमें लिखी गई कहानियाँ कोई कल्पनापर ही निर्भर नहीं हैं वरन् ऐतिहासिक तत्वोंको आधार मानकर अपनो भाषामें सबके लिए उपयोगी बनाया है। इन कहानियोंके सम्बन्धमे स्वयं बाबूजीने अपने विचार इस प्रकार प्रकट किये हैं "प्रस्तुत कहानियाँ ऐतिहासिक घटनाओं का पल्लवित रूप है। उनसे जैन संघकी उदार समाज व्यवस्था और जैनोंके राष्ट्रीय हित कार्यका भी परिचय होता है। पाठक, उन्हें पढ़ें और उनसे अपने मूल्यमय जीवनको अनुप्राणित करें।" सच्चा साम्यवाद और सच्चे साम्यवादी भगवान महावीर यह १० पृष्ठकी छोटीसी पुस्तक है फिर भी थोड़े बहुत कहनेवाली बात चरितार्थ होती है । आज व्यवहारमें जो साम्यवाद है उसे सफल हुआ कैसे कहा जावे ? यह समझमें नहीं आता। भौतिकवादके स्थान पर आध्यात्मवादकी दृष्टिसे साम्यवाद अावश्यक दिखाई पड़ती है और सम्भव भी जान पड़ती है। व्यक्ति बाहरसे भले मासमान हो पर अन्दरसे उनमें समानता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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