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(४४) रक्षा आदिके लिये रागद्वेष पर्जित युद्ध तकको धर्म बतलाया है......यह पुस्तक प्रत्येक भारतवासीके, चाहे वह जैन हो या जैनेतर पठन और मनन करनेयोग्य है।"
भगवान महावीर और अहिंसाका तो घनिष्ठ सम्बन्ध था पर इनसे भी पूर्व देशमें अहिंसाका साम्राज्य था। गोता, यजुर्वेद, उत्तरपुराण, महाभारत, शतपथ ब्राह्मग, मनुस्मृति, बौद्ध शास्त्र सुत्तनिपात, प्रश्नोपनिषद, मुण्डोकोपनिषद, कठोपनिषद और जैन अन्थोंके आधार पर पूर्वमें अहिंसाके वातावरणको बताया है। आजीबिक सम्प्रदाय, जो ज्योतिषशास्त्र के आधार पर अपनी आजीविका चलाता था,में भी पूरी तरहसे, अहिंसाका बोलबाला देखने में मिलता है।
महात्मा बुद्धने भी अहिंसाका प्रचार किया। मौर्य साम्राज्यमें भी अहिंसाका बोलबाला था, मौर्य साम्राज्य के बाद भी अहिंसक वीरों में प्रमुख कलिंग सम्राट, ऐल खारवेल, विक्रमादित्य. कुमारपाल,
मोघवर्ष आदि हैं जिन्होंने अपने शासन कालमें अहिंसा तत्वका विस्तार किया। मुगल सम्राट अकबर तक जैनधर्मसे प्रभावित हो गया था, और शासकीय विशेष आज्ञापत्र निकाल कर जीव हत्या बन्द करा दी थी।
डाक्टर साहबने भगवान महाबोर की अहिंसाको लोकोपकारी बताते हुवे कहा है-"यह बिल्कुल स्पष्ट है कि भ० महावीरकी अहिंसा लोक हितकारी है, जीव मात्र उसके आलोकमें आकर सुख शांति को पा सकता है। स्थायी सुख और अमर जीवन इस अहिंसा पालनका सुमधुर फल है। आओ उसको अभ्यर्थना करने का संकल्प कर लें और याद रखें कि लोकहितका अहिंसासे बढ़कर और कोई साधन नहीं है।"
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