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रखा है। भारतीय संस्कृत साहित्य में जिन दिगम्बर मुनियों की चर्चा है उनके नाम भी गिनाए गये हैं । अंग्रेजों के शासनकाल में जितने दिगम्बर संघके तथा उनके अन्तर्गत विहार करनेवाले सभी मुनियोंका वर्णन किया है जो भारतभर में भ्रमण करते थे । इन मुनियों चातुर्मास, निवासस्थान, तथा नाम बगैरहका भी पता लगता है। और धर्मको लेकर जो मुकद्दमेबाजों होतो रही हैं, उनके निर्णयों की प्रतिलिपियां भी हैं। आजके युग में पूज्य बापू, श्री बफोर्ड, स्विटजरलैंड के निवासी डा० रोडियर, बंगाली विद्वान बरदकान्त, महाराष्ट्रीय विद्वान श्री वासुदेव गोबिन्द आप्टे, आदिके उच्च श्रेणीके विचार भी देखनेको मिलते हैं। सहज तया अनुमान लगाना कठिन है कि कितने परिश्रमसे इस ग्रन्थ की रचना हुई है ।
भगवान महावीरकी अहिंसा और भारत के राज्यों पर उसका प्रभाव
मई १९३३ में प्रकाशित ६० पृष्ठीय यह पुस्तक बाबूजी द्वारा रचित है। जिसमें भगवान महावीरकी अहिंसाका विभिन्न राज्योंपर जो प्रभाव पड़ा है उसका वर्णन किया गया है। देशके अनेक लोग यह कहते सुने जाते हैं कि जैन धर्म अथवा बौद्ध धर्म के आगमन से देश में शिथिलता बढ़ने लगी तथा ढोगों में कायरताका श्री गणेश हुआ, पर यह बात पूरी तरहसे निरस्वार है. इसी बात को बाबूजीने इस पुस्तक में सिद्ध किया है। पुस्तक के सम्बन्ध में साहित्याचार्य पं विश्वेश्वरनाथ ही रेड, प्रोफेसर जसवन्त कालेज जोधपुरने भूमिका में लिखा है " श्रीयुन कामताप्रसाद जैनने जैन शास्त्रोंके अवतरण देकर कनक मनाक भावों पर ही हिंसा या अहिंसाको उत्पत्ति सिद्ध का है। साथ ही आपने ऐतिहासिक उदाहरण उपस्थित कर देश और आत्म
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