________________
(४२) धर्मके रूपमें मनुष्यको अच्छी पोशाक देही दी है। फिर प्रकृतिसे निकटरूप जितना जीवन व्यतीत किया जाता है, सुख शांति भी प्राप्त होती है। फिर कपड़े पहनकर अपने दुराचारको छिपाया भी तो जा सकता है। दिगम्बरत्वमें सदाचारकी अधिक मात्रा. आरोग्यका पोषण, साधु प्रकृतिको अनुरूपता, परमोपादेय धर्म, त्याग वृत्ति, ममताकी उपेक्षा, आत्मोतिकी पराकाष्ठा, मोक्षमार्गकी प्राप्ति, और पुद्गल के संसर्गसे मुक्ति होने जैसी अनेक बातोंका समावेश होता है।
श्री ऋषभदेवको दिगम्बरत्वका प्रथम उपदेशक माना जाता है। इन्हें योगी कल्पतरु और महायशस्वी भगवानके रूपमें माना जाता है। हिन्दू धर्मके वेद तथा उपनिषद जो पुरातन ग्रन्थ हैं, में तो दिगम्बरवका वर्णन मिलता है । जाबानोपनिषत्, परमहंसोपनिषत् , भिक्षुकोपनिषत् , दत्तात्रयापनिषत् , और याज्ञवल्क्यो . पनिषद् आदिके उन्दर्मोंसे अपनी बातकी पुष्टि की है।
मुगलशासक औरंगजेबके समयमें फ्रांससे आनेवाले डॉ. बनियरने नंगे हिन्दू सन्यासियोंको देखा था, सन् १६२३ में आनेवाले विदेशी यात्री पिटरडेल्ला वॉल्लाने भी अहमदाबाद में साबरमतीके किनारे अनेक नागा साधुओंके दर्शन किये थे।
जलालुद्दोनके 'महलबी ग्रन्थ' तथा यहूदियों की पुस्तक Ascensioh of Isaian, से भी दिगम्बरत्वकी झलक मिलती है। दिगम्बर मुनिक २८ गुणों विभिन्न नामों, अतीतकाल में दिगम्बर मुनियोंको स्थिति, भगवान महावीरके समकालीन दिगम्बर मुनि, आदिका विस्तार में हल्लेख किया है। आपने नन्द साम्राज्य, मौय सम्राट, सिकन्दर महान, संग राजवंश, राजा मनेन्द्र कलिंग, नृा ऐल खारवेल, गुप्त साम्राज्य, हर्षवर्धन परमार राजा, राजाभोज, गुजरात के शासक, चन्देल राज्यमें दिगम्बर मुनियों की जो स्थिति रही है उसको भी भ्रमित जनताके सामने खोज करके
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org