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(४१) जैनोंके पूर्ववर्ती विभिन्न मत मिलते हैं। और उनमें से प्रायः सबका हो ठीक ठीक विचार इस निबंध में किया जा चुका है
और तब एक निश्चित मत इस विषयमें निर्धारित किया गया है अर्थात भगवान महावीरका निर्वाण ई० पूर्व ५४५ में हुला था।"
दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि सन् १९३२ में प्रकाशित ३२० पृष्ठको पुस्तक "दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि" बाबू कामताप्रसादजोकी रचित है। इति. हाससे प्रेम रखनेवाले बाबूजीने समयकी पुकारको सुनकर दिग. बरत्व पर थोड़े ही समयमें एक बड़ीसी पुस्तक लिख डाली। धर्म भावनासे प्रेरणा लेकर सत्य के चारार्थ सभी धर्मों के लिये, चाहे वे हिन्दू, मुसलमान, सिख और ईमाई क्यों न हो, रची गई। इसकी उपयोगिताकी कसौटी भी यह निर्धारित की गई। "सब ही प्रकार के लोग उसे पढ़ें और अपनी बुद्धिको तराजू पर उम तौलें और फिर देखें दिगम्बरस्व मनुष्य समाजकी भलाई के लिये कितनी जरूरी और उपयोगी चीज है।" . इस पुस्तके सम्बन्धमे श्री राजेन्द्रकुमार जैन न्यायतीर्थका
कार इस प्रकार - "दिगम्बरबके समर्थन में प्रस्तुत पुस्तकमें प्रचोनमे प्रवीन शाहों के लेखों एवं शिलालेख और विदेशी यात्रियों के यात्रा विवरणों में से कुछ शब्दों का संग्रह भी बड़ी ही गम्भीर खोजके साथ किया गया है, दिगम्बरत्व सैद्धांतिक एवं व्यवहारिक मत्य है। अतएव वह सवतंत्र सिद्धान्त भी है, इसका स्पष्टीकरण भी हमारे सुयोग्य लेखकने महत्वके साथ किया है।"
बाप स्वयं ही विचार करिए कि १०६ पुस्तकों के अध्ययनके बाद लिखा गया यह अन्य किसना महत्वपूर्ण होगा ? प्रकृतिने
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