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________________ (४०) मम्राट खारवेल, गुप्तकाल, सम्राट हर्ष, गजा भोज, सिद्धराज जयसिंह, सम्राट अमोघवर्ष, शेग्शाह, अकबर, औरंगजेब आदि अनेक राज्यकालोंमें दिगम्बर मुनियों को विहार करते हुए देखा गया है । यह कोई नई चीज नहीं है, बाबूजीने इसीमें लिखा है, "दिगम्बर जैन मुनियों का सर्वत्र विहार करना धर्म और कानून सब ही तरह से उचित है। उस पर किसीको आपत्ति हो ही नहीं सकती। अज्ञात कालसे भारत में जन जैन साधु होते आये हैं, और आज भी वह इस पवित्र भूमिको अपने दिव्य भेष और पुण्य चरित्रसे अलंकृत कर रहे हैं। यह इस देशका सौभाग्य है" भगवान महावीरका समय इस ३२ पृष्ठीय पुस्तकका लेखन कार्य जुलाई १९३२ में हुआ । भगवान महावीरके निर्वाण सम्बत के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद था। वैसे अनेक विद्वानोंने इस समस्या पर अपने अपने विचार शोधके आधार पर प्रपट किये । उनका अध्ययन कर तथा इस सम्बन्धमें और खोज बीनकर वीर निर्वाण सम्बतका शुद्ध रूप समाजके सामने रखा। महात्मा बुद्ध और भगवान महावीर का समकालीनता तथा विद्वानोंके विचारोंसे जन्मसे लेकर मृत्यु तकके सभी पहलूओं पर संक्षिप्त में प्रकाश तो डाला ही है पर साथ ही यह भी नहीं भुलाया गया है कि भगवान महावीरका समय कौनसा है ? विभिन्न शास्त्रों, डॉ. जैकोबी, ग्रो० जाल चान्टियर और श्री देवसेनाचार्य जैसे बोसियों विद्वानों के साहित्यांचलसे समयकी पुष्टि करनेका भरसक प्रयास किया है। ___ डॉ० साहबने सभी मतों पर विचार करते हुये यही लिखा है " जैन समाजमें एक थोड़े समयसे ही उनका निर्वाण ई० पूर्वे ५२७ में हुमा माननेका रिवाज चल पड़ा है वैसे इस विषयमें Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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