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________________ (३८) "केवळ पुरुष ही थे न वे जिनका जगतमें गव था । गृहदेवियां भी थीं हमारी देवियां सर्वथा ॥" अबला जन्मोंका आत्मबल, संसार में वह था नया । चाहा उन्होंने तो अधिक क्या, रवि उदय ही रुक गया । अन्तमें सच्चे वीरके स्वरूपको बताते हुये प्रेरणा लेनेकी आज्ञा प्रदान की है। वीर वह है जिसके हृदयमें दया हो, धर्म हो । पापियोंके सख्त, निर्दोषोंके हकमें नर्म हो! कष्ट हो, दुख हो, न बहु लेश्चिन भलाईसे फिरे । जखम खाकर भी न मुंह, उसका लड़ाईसे फिरे ।। दिगम्बर मुनि नवम्बर सन् १८३१ में प्रकाशित होनेवाली "दिगम्बर मुनि" नामक ३२ पृष्ठीय पुस्तक वाबूजो द्वारा रचित है। भूमिकामें प्रो० घासाराम जैन विकटोरिया कालेज ग्वालियरने पुस्तक लिखनेके उद्देश्य तथा समाजकी आवश्यकताको स्पष्ट कर दिया है। "कालदोषसे सर्वसाधारण लोग नग्नताके महत्वको भूल बैठे हैं। और इस कारणसे परम पवित्र, अन्तरंग व बाह्य विकारशून्य, निष्परिग्रही मोक्षमार्गके साधक, दिगम्बर मुनियों के विचरनेमें लोगोंके द्वारा रुकावटें डाले जाने की चेष्टा हो रही है। इस छोटीसी पुस्तकमें लेखक महोदयने बड़े परिश्रमसे प्रमाण एकत्रित कर यह सिद्ध कर दिया है कि सभी धर्मों के धर्म-ग्रन्थ नग्न अवस्थाको आदर्श मानते आ रहे हैं और इसी कारणसे प्राचीन इतिहासकाळसे लेकर आजपर्यंत किसी भी शासन के राज्यमें दिगम्बर मुनियोंके बिहार में कोई बाधा नहीं डाली गई।" दिगम्बर मुनि अपनी प्राकृतिक वेषभूषामें रहते हैं, जन्मके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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