SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३७ ) कुछ भी लिखा है वह ठीक तो है ही, पर लिखनेका मुख्य उद्देश्य यही जान पड़ता है कि इसके पढ़नेसे समाजके व्यक्तियोंमें नब चेतना उत्पन्न हो, और बीरता, त्याग, कर्तव्य-परायणता एवं चरित्रकी अनुपम शिक्षा लेकर अपने मार्गपर आगे की ओर बढ़ सकें। 9 पुराणकाल से लेकर १६ वीं शताब्दी तक के अनेक जैन राजकुलों तथा वीर पुरुषोंका वर्णन किया गया है। वीरांगनाओंको भी सुहाया नहीं है। ऋषभदेव, चक्रवर्ती, अरिष्टनेमि, महाबीर जैसे तीर्थंकर श्रेणिक, उदायन, चन्द्रप्रद्योत, नन्दिवर्द्धन, चन्द्रगुप्त, बिन्दुवार, अशोक, विक्रमादित्य, पुष्यमित्र शंकर गण, भोज और नरबर्मा जैसे राजाओं, वीरधवल, पाहिड, भामाशाह, आशाशाह, सेनापति अमरचंद, अमरचंद दीवान, जैसे वीरों तथा खारवेल की रानी, भैरवदेवी, सवियब्बे और जकमब्बे जैसी वीरांगनाओं का वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त विभिन्न राज्यों जैसे मैसूर, विजयनगर, बीकानेर, जोधपुर और गुजरातमें जो वीर हुये हैं उन्हें भी भुलाया नहीं गया है । , कवंशी, कलचूरिवंशी, पल्लत्रवंशी, चेरवंशी, कोगलवंशी, चेगलवंशी, पाण्डवंशी, कोदम्बवंशी, होय्यबलवंशी, गंगवंशी, और आन्ध्रवंशी राजा महाराजाओं, सेनापतियों, दीवानों तथा अन्य बीरात्माओं के जीवन पर प्रकाश डाला है। महापुरुषों की जीवनगाथाएं समाज का सार होती हैं। उनके त्याग और वीरता की कहानी पढ़ते हर किसीके खून में उबाल आ जाता है। जो बातें लम्बे चौडे भाषणों से हमें नहीं मिलती वह अपने आप सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करनेवाली व पुरुषार्थी बनने आदिके लिये प्रेरणा जीवनियोंसे मिल जाती है। यह देश महिलाओंका भी सदा सम्मान करता था, वह अबला नहीं सबला थीं, उनकी शक्ति बाबूजी के शब्दों में सुनिए - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy