________________
जैन वीराङ्गनाएं __" जैन वीराङ्गनाएं " नामक ८० पृष्ठका ग्रन्थ वाबूजी द्वारा लिखित सन् १९३० में प्रकाशित हुआ, जिसमें ७ चोर माताओं की गौरव गाथाओंको अंकित किया गया है। बाबूजी नारियोंको अबला कहना उनका अपमान समझते थे, वे सबला है इसलिये प्रगतिके द्वार उनके लिये समान रूपसे खुले रहने चाहिए । महिलाओं की महिमा तथा उनके उद्धार की भावना समाजमें जागृत करनेके लिये हो इसकी रचना हुई है। पुरातन महिलाएं खाने, पीने और घर बेठने तक ही अपने कर्तव्यको नहीं माने बैठी थीं, वरन् अपना और जन-सुधारका कार्य कर अमरत्वको प्राप्त हो गई।
सती चन्दनबाला, महारानी सिंहपथा, महारानी वीरादेवी, वीराङ्गना साबियव्वे, बीराङ्गना जबकमव्वे, बिदुषी विजयकुमारी
और बीरमाताके जीवनको बीरत्व पूर्ण, सोये मनको जगानेवाली तथा खून खौलने वाली घटनाओंका वर्णन किया है। इस पुस्तकको पढ़नेसे नर नारी दोनोंके हो हृदयमें वीरताके अंकुर फूट पढ़ते हैं और देश धर्मपर कुरबान होनेवालों की स्मृति में कर्तव्य मार्ग पर अड़े रहने की प्रेरणा मिलती है। __ श्री ऋषभदेवकी उत्पत्ति असंभव नहीं है - आर्यसमाजके नेता पं० देवेन्द्रनाथ शास्त्री द्वारा रचित ट्रेक्ट "श्री ऋषभदेवजीकी उत्पत्ति असम्भव है" के उत्तरमें उत्पत्ति सम्भव बताते हुये बाबूजीने सन् १९३० में ७६ पृष्ठकी यह पुस्तक लिखी। इस पुस्तकको पढ़ने से यह ज्ञात होता है कि बाबूजीको बात्मा यहांके अन्धविश्वास, और सम्प्रदायवादको देखकर आठ माठ बांसू बहा रही है। वे बड़े दुःखी जान पड़ते हैं, इसका प्रमुख कारण यही है कि लोग अपने अपने विचारोंको बिल्कुल
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org