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________________ (३३) बाबूजीने स्पष्ट ही लिखा है " सने भहिंसा तत्वका महत्व जैन गुरुओंसे सुना था, इस उपदेशका प्रभाव उसके हृदयपटलपर अंकित था और उसने कलिंग विजयके पहलेसे ही राजकीय रसोईघरमें मांसभोजी सम्बन्धियोंके लिये पशुओं का मारा जाना कम करा दिया था।" मो० कर्न तथा टामसने अशोकको जैनी बताया है। जिन शासनका प्रचार कियाथा, अबुलफजलको 'आईने अकबरी' राजतरिंगणी, जैसे ग्रन्थ भी जैनत्वको स्वीकार करते हैं । अशोकके द्वाग दी गई सारी शिक्षाएं भी जैनधर्मसे सम्बन्धित बताई गई हैं । अनेक शब्द जैसे श्रावक, प्राण, जीव, श्रमण, त्राण, अनारम्भ, भूत, कल्प, एकदेश, संबोधि, वचनगुनि, समवाय, वेदनीय, अपामिनवे, आसिनच, जीवनिकाय, प्रोषध, धर्मवृद्धि आदि शब्द जो शिलालेखों में हैं वे जैन साधुओं द्वारा व्यवहत अथवा जैन ग्रन्थों के ही हैं। विविध ग्रन्थों तथा शिलालेखोंके आधार पर अशकका जैनो होना ही ठहरता है, लिजिये आप भी बाबूजीके शब्दोंमें ही सुन लीजिए "अशोकका बचपनसे ही जैनधर्मसे संसर्ग था। अपने प्रारम्भिक जीवनमें वह जैनधर्मानुयायी था, यह बात जैनोंके ग्रन्थों के साथ२ बौद्धोंके कथन और उसके शिलालेखोंसे भी प्रकट है। जैन ग्रन्थ तो उसे प्रारम्भमें जैन तीर्थों की वन्दना करते हुये और जैन मन्दिर बनवाते हुये प्रकट करते ही हैं......निस्सन्देह अशोक अपने जीवनके प्रारम्ममें जैन श्रावक था। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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