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________________ ( ३१ ) 5 "हमारी यह भावना है कि सर्व साधारण महाशय इससे उचित लाभ उठाकर अपने जीवनको अहिंसा पूर्ण और उन्नतिशील बनावें ।” सुखके राजमार्गके विभिन्न उपाय, उपासना और प्रार्थना की विधि मूर्ति पूजाका कारण हिन्दू, ईसाई, बौद्ध व इस्लाम धर्ममे बलिदान की भावनाका महत्व, तीर्थयात्राका वास्तविक स्वरूप, संयमकी जीवन में आवश्यकता, अहिंसाका सैद्धान्तिक विवेचन, अहिंसाव्रत के सहायक साधन, और ब्रह्मचर्य व्रतकी महिमा जैसे अनेक जीवनोपयोगी अंगोंकी इस ग्रन्थ में सविस्तार विवेचना की है। चौर्य कर्मकी भी खूब निन्दा की गई है तथा जुआ खेटने को भी पापकर्म बताकर उससे छुटकारा पानेके लिये जोर दिया है। जुम्राको भी चोरी ही बताते हुए बाबूजीने लिखा है" विवेक बुद्धिके लिये जुआ खेउनेका त्याग चोरीकी तरह करना ही श्रेष्ठ है। चोरीकी तरह यह भी पापका कारण एक तरह से प्रकट चोरी ही है। इसके अभ्यास से मनुष्य में सहज ही अन्य आवश्यक दुर्गुण आजाते हैं अतएव जुए और चोरी के त्याग में उसका कल्याण है | अपरिग्रह व्रतकी व्याख्या भी की गई है । इस प्रकारके परिग्रह शास्त्रोंके आधार पर बताये हैं जो यह हैं - क्षेत्र, वास्तु. हिरण्य, सुवर्ण, धन, धान्य, दासी, दाख, मांड, कुप्प । इस व्रत के करनेका मुख्य ध्येय तृष्णा व ढोभसे बचने के लिये होता है । सन्तोषके अभाव में जीवन दुःखी होता चला जाता है। व्यक्ति स्वय ही अपने दुःख सुखका उत्तरदायी होता है, उसके सुख दुःखमें अन्य कोई भी भागीदार नहीं हो पाता । इसलिये शांति प्राप्त करनेके लिये भी स्वयं प्रयास करना पड़ता है । पर मानवीय स्वभाव पानीके प्रवाहकी तरह होता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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