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महारानी चेलनी जून सन् १९२५ में वाबूजी द्वारा लिखित १७० पृष्ठकी यह पुस्तक बहायानी चेकनीके जीवनचरित्र पर प्रकाश डालती है । यह जीवनचरित्र कोई साधारण कहानी नहीं है वरन् प्रत्येक गृहस्थके पढ़नेयोग्य उपदेशात्मक कथाका धर्म-ग्रन्थ हैं।
भारतमें अनेक ऐसे चारित्रवान व्यक्ति हुये हैं जो प्रकाशमें नहीं आ सके । वीरांगनाओं और विदुषी महिलाओंकी तो इससे बुरी स्थिति है। इसी कारण समाजमें देवियों का जो पूर्व में स्थान था वह अब नहीं है। बाबूजीने जिस उद्देश्यको लेकर इस अन्धकी रचना की है वह इस प्रकार हैं-"अपने घरोंको यदि हमें दिव्य शृङ्गारसे अलंकृत बनाना है तो आदर्श भारतीय रमणियों के पावन जीवन पुनः प्रकाशमें लाना नितांत आवश्यकता है। प्रस्तुत पुस्तक इस ही बातको लक्ष्यकर प्रकट की जारही है।"
तत्कालीन राज्य और लिच्छिव वंश, गणराज्य और न्यायकी बादर्श व्यवस्थाका इस पुस्तकसे पूरी तरह पता चलता है । चेलनीकी कौमारावस्थाके साथ ही साथ सुन्दरताका वर्णन किया है। गुणहीन सौन्दर्यको बेकार बताते हुये पुत्रीमें भी पुत्र जैसे प्रेमके दर्शन करते तथा पुरातन भारतीय आदर्शको सामने रख. कर माता-पिताको स्वयं सुसंस्कारित बननेकी शिक्षा दी गई है। बैसे चेलनीकी कौमारावस्था, सम्राट श्रेणिकका परिचय, विवाह, चेलनीकी धर्म-परीक्षा, सम्राट श्रेणिक और यशोधर मुनि, सम्राटकी सम्यक्त्वमें दृढ़ता, महारानीका गृह-सुख तथा अन्तिम त्यागमय जीवन आदिकी सुन्दर झांकी तो दर्शन के लिये मिलती हो है। पर साथ साथ माता-पिता अपने बच्चों के स य कस वरहका व्यवहार करें ? विधवाएं अपना जीवन को बित?
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