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________________ ( २४) इतिहाससे प्रेम बाबूजीने इतिहासका खूध अध्ययन किया। विभिन्न पुस्तकालयों, शोध-संस्थाओं, शिलालेखों तथा अन्य जो भी सामग्री उपलब्ध हुई उसको खूब समझा और परखा। इसीलिए अनेक ऐसे ग्रन्थ हैं जो इतिहास के अनेक तत्वोंपर निर्भर हैं । इतिहासके अभ्ययनकी आवश्यकता अनुभव करते हुये श्रद्धेय बाबूजीने "वीर-पाठा " की भूमिकामें लिखा है-'जैन इतिहास के अध्ययन में मेरी रुचि विशेष है और उस दिशामें मैंने कुछ साहित्य निर्माण भी किया है, किन्तु इतिहास एक ऐसा नोरस प्रश्न है कि आवाट वृद्ध बनिता उसे पढ़ना जल्दी स्वीकार नहीं करते । विवेचनात्मक पुरानी बातोंमें कलामय औपन्यासिक सरलता भला कहांसे आये ? परन्तु साथ ही यह सच है कि बिना पुरानी बातोंको जाने कोई जाति अपनी उन्नति नहीं कर सकती।" यदि यह कहा जावे कि बाबूभी प्रथम इतिहासकार हैं और बादको समाज सुधारक तो अनुचित न होगा। इनके लोकप्रिय होनेका प्रमुख कारण इतिहाससे प्रेम ही है। जो कुछ भी लिखा है उसमें अधिकतर सामग्री इतिहासके आधार पर ही है। 'जैन जातिका हाम', संक्षिप्त जैन इतिहास भाग १, भाग २ खण्ड १, भाग २ खण्ड २, भाग ३ खण्ड १, भाग ३ खण्ड २, ३, ४, ५, और भाग ४ खण्ड १-२, प्राचीन जैन लेख संग्रह, जैन वीरोंका इतिहास, बादि अनेक प्रसिद्ध पुस्तकें हैं। बाबूजीकी कुछ पुस्तकोंका अनुवाद तो गुजराती, चीनी, जापानी आदि भाषामें हो चुका है। "जैनधर्म चारित्र्य" का बनुबाद गुजराती भाषामें सन् १९५६ में, तथा "बाहुबति" नामक अंग्रेजी पुस्तकका अनुबाद चीनी भाषामें देखा है। इस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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