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________________ ( २२ ) यशस्वी सम्पादक आज सम्पादनका अर्थ यह लगाया जाता है कि पत्रिकाओं के लिये आनेवाले लेखोंको वैसा का वैसा ही छाप यदि कुछ कमी अनुभव हो तो लेखकके पास बापिस कर दिया जावे, साथ ही एक लेख कलम " से किसी ज्वलन्त समस्याको लेकर लिख दिया जावे । पर बाबूजीने सम्पादकका न तो कभी यह अर्थ लगाया और न ऐसा किया हो। ठीक पं० महावीरप्रसाद द्विवेदीकी जो भावना हिन्दी साहित्य के प्रचार- प्रसारकी थी वही बात बाबूजीमें हमें दिखाई पड़ती है। उनका प्रमुख ध्येय नये साहित्यकारों को जन्म देना रहा है। नवोदित साहित्यकारोंको प्रोत्साहन देना उनके आये हुए लेखोंके प्रति उदासीनताकी वृत्ति न बनाकर एक कुशल शिक्षककी तरहसे पूरे लेखको पढ़ना, उसमें संशोधन करना, नयी टिप्पणी लगाना और फिर प्रकाशित करवाना था, जिससे प्रत्येक लेखक आशावादी तथा सरनाही बनकर और भी आगे विकास के मार्ग पर पहुंच सके । 6 वीर' पत्रके प्रथम सम्पादक नबम्बर १९२३ में बाबूजी हो बने थे । और ३० से भी अधिक वर्षों विशेष आप संपादक बने रहे । लगभग २५ वर्ष तक पं० परमेष्ठीदास जैन ललितपुर (झांसी) भी बाबूजी के साथ वीरके सम्पादक मण्डलमें रहे। इसीलिए उन्होंने कहा भी " बाबूजी इतना लेखन कार्य कर गये कि दूसरे किसीसे भी आशा नहीं " इसके अतिरिक्त सुदर्शन, आदर्श जैन, जैन सिद्धान्त भास्कर तथा उत्कर्ष ( जातीयपत्र ) का भी बड़ी कुशलता से सम्पादन किया। पिछले १४ वर्षोंसे ' बॉइस ऑफ अहिंसा' और ' अहिंसा बाणी' का सम्पादन भी करते रहे । अहिंसा वाणी हिन्दी क्षेत्रों में तथा 6 'बॉइस ऑफ अहिंसा For Personal & Private Use Only Jain Education International दिया जावे | उस रचनाको " सम्पादककी " www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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