________________
(२१) बाबूजीका यह विश्वास था कि इससे लोगों में ज्ञान, विवेक, सुखशान्ति और प्रेमका वातावरण उत्पन्न होगा। प्रन्थ प्रकाशनके लिये सुरक्षित धन राशिमेंसे पहला ट्रेक्ट पिताजीकी पुन्यस्मृतिमें 'कृपण जगावनचरित्र' प्रकाशित करवाकर जनता जनार्दनकी सेवामें निशुल्क वितरत करवाया। स्थानीय डी० ए० बी० इन्टर कालेजमें एक कमरेका निर्माण करवाया। स्थानीय मन्दिरमें संगमरमरका फर्स, वाचनालयमें सैंकडों पुस्तकोंका उदारतापूर्वक दान दिया। इसके अतिरिक्त अन्य संस्थाओंके सभासद आर्थिक सहयोगके लिये जब भी आते उन्हें सहयोग देकर कर्तव्य पालन करते रहे। मिशन के प्रचारकाय, ट्रेक्ट पर्चे, या ऐसी ही अनेक गतिविधियों में तीन चारसौ रुपया माह सनका निजी लगता रहा। प्रेसकी बायका आधेसे अधिक भाग धर्मप्रचार व दान में देनेवाले ब्यक्तिके बारे में क्या प्रशंम्रा की जावे ? स्वयं ही अनुभव करिये कि बह दिव्यमूर्ति कितनी विशाल हृदयी होगी जो दूसरेके दुःख को अपना दुःख समझकर दूर करती थी। * अखिल विश्व जैन मिशनका प्रधान कार्यालयभवन अलीगंजमें निर्मित हुआ जिसमें २० हजारके आसपास रुपया कुल व्यय हुआ। कई हजार रुपये की अचल सम्पत्ति बेचकर उसमें लगाकर उस कार्यको पूर्ण किया, इसके साथ ही साथ उच्च स्तर पर वेदी प्रतिष्ठोत्सव भी सम्पन्न कराया जो बाबूजीके जीवन का धार्मिक कार्यों में अन्तिम कार्य ही माना जाना चाहिए ! क्योंकि वह दोनों कार्य मृत्युसे दो माह पूर्व ही किये थे। अपने जीवन में अनेक ऐसे अनाथ और निर्धन छात्रोंकी सहायता भी की जो बेचारे पढ़ने की इच्छा रखते हुये भी पढ़ने में असमर्थ थे, उनके लिये शुल्क, पुस्तकें तथा अन्य जो भी सहायता कर सकते थे, करते रहे।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org