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________________ (१८) राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान राबूजी अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिके महापुरुष थे, जिनके व्यक्तित्वसे सभी प्रभावित तो हुये ही साथ ही भूरिभूरि प्रशंसा भी की गई। 'यशोविजय जन ग्रन्थमाला'की ओरसे 'भगवान महावीर विषयक निबन्ध पर 'स्वर्ण पदक' मिला । भारतीय विद्या भवन बम्बईके तत्वावधानमें आयोजित निबन्ध प्रतियोगितामें “हिन्दी जैन साहित्य निबन्ध पर 'रजत पदक' प्राप्त हुआ । इन्दौर (म० प्र०) की निबंध जांच कमेटीके द्वारा "जैन संख्याके ह्राससे बचने के उपाय" विषयक निबंध 'सर्वश्रेष्ठ' ठहराया गया। बैरिस्टर श्री चम्पतरायजी द्वारा संस्थापित जैन एकेडेमीने अपने करांची अधिवेशन में, जो सन् १९४२ में सम्पन्न हुमा, बाबूजीको डॉक्टर ऑब लोजकी उपाधि से सुशोभित किथा । कनाडाकी ईसाई Pcnmenical Chruch आन्तर्राष्ट्रीय शिक्षण संस्थाने सर्व धर्मके तुलनात्मक अध्ययन पर पो. एच. डी. की उपाधि प्रदान की। बनारसकी संस्कृत परिषदने 'साहित्य मनीषी' तथा जैन सिद्धान्त भवन आराको स्वर्ण जयन्ती पर 'सिद्धांताचार्य' की उपाधियोंसे सम्मानित किया गया। ब्रिटिश शासनमें अनेक राजकीय प्रशंसापत्र प्राप्त हुये। बादको जनता द्वारा अभि. नन्दन पत्र समय समय पर भाषण, अधिवेशन व सम्मेलनों में प्राप्त होते रहे हैं। रॉयल एशियाटिक सोसायटी उन्दनने बाबूजीको सदस्य चुना। जर्मनीकी कीसरलिंग सोसायटीने अपना सम्मान सदस्य तथा मध्य अमेरिकाके अंतर्राष्ट्रीय धर्मसंघने सर्वोच्च सम्मान प्रदान करके अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना व्यक्त की। १५ वें विश्व शाकाहारी सम्मेउनमें उत्तर भारत के देहली अधिवेशनको स्वागतकारिणी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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