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(१३) मिली प्रेरणा आदिका स्पष्ट ज्ञान होता है इसलिये हम उनके शब्दोंको यथार्थरूपसे ही यहां उल्लिखित किये दे रहे हैं__ " उनके (पिताजी ) हो अनुग्रह और उदार भावने हमें यह सुअबसर दिया कि हम समाजको सेबा कर सके हैं और कर रहे हैं। समाजके लिये उनका यह समुदार कार्य भुलाने की वस्तु नहीं हो सकती। अच्छा तो सुनिये-संयुक्त प्रान्तके जिला एटामें अलीगंज नगर के पास ही एक कोट नामका ग्राम है। तेरहवें तीर्थकर भगवान विमलनाथजीको जन्मनगरी और तपोभूमि कम्पिलासे वह, १०-१२ मील दूर है। अपनो समृद्धिशाली स्थिति में कम्पिला वहां तक फैला था। ___इस कोट के ग्राममें काश्यपगोत्री यदुवंशी बुढे ले जैनी रहते थे। कोटके जो महानुभाव फर्रुखाबादके नवाबके यहां नायच थे. उनके भंडारीका कार्य जैनी करते थे। जब सन् १७४७ में अलीगंज का जन्म हुआ तब आसपाससे बुलाकर लोगोंको यहां नवाबखान बहादुग्ने बसाया । तभी कोटके उपयुक्त जैन कुटुम्बके रत्न श्री लिमबदामजी यहां आकर बस गये । उनके वंशज कोटवाले जैनी कहलाए । इस कोटवाले वंशमें ही इमारे पूज्य पिताजी श्री प्रागदासजीका जन्म वि० सं० १९२५ में हुआ था। उनके पितामह श्री फूलचन्दजी पराक्रमी पुरुष थे। उन्होंने जाकर फौजमें देन लेन और ठेकेदारीका व्यापार प्रारम्भ किया और उसमें वह अपने पौरुषसे सफल हुये।
हमारे पितामह श्री गिरधारीलालजी तो उस समय दिवंगत हो गये थे, जब हमारे पिताजो अबोध बालक थे। शिखाजीकी यात्राका संघ गया था, सानंद यात्रा करके जब वह लौट रहे थे और संघकी बैल गाड़ियां कानपुर आ गई थीं तब वहां ही पितामहजी स्वर्गवासी हो गये। पितामहीजी पर मानो वन ही टूट पड़ा हो।
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