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कुशल गह संचालन
पुत्र पुत्रियोंकी बाल हठों पर न खीजते हुये सदैव प्रेमसे उन्होंो समझाते रहे। और उचित मार्गदर्शन देते रहे। मारपीटकी कौन कहे कभी नाराज होने तकका नम्बर न आया । क्रोधको जीत ही लिया था । ऐसा उनके जीवन से प्रत्यक्ष झळक मालूम पड़ती है । प्रेम, मिशन, मन्दिर, प्रकाशन, पुस्तकालय तथा अपना घरेलू आय-व्ययका हिसाब स्वयं ही रखते थे । उनका जीवन तो एक मशीनके समान था। वे चौबीस घण्टे के दिन रात में अकेले ही ५-६ व्यक्तियोंके बराबर कार्य करते थे । उनकी व्यवहारिक करुणाकी कई बातें पारवारिक जीवन में मिलती हैं। कई बार नौकरोंके द्वारा ऐसे कार्य हो गये जिनके कारण उन्हें निकाल देना अनिवार्य था, फिर भी उन्होंने ऐसा न किया ।
दो पुराने सेवक जो वयोवृद्ध हो गये थे, उन्हें भी अन्तमें हटाना इसलिये उचित नहीं समझा कि जिन्होंने अपना पूरा जीवन परिवारकी सेवामें लगाया, उन्हें किस तरह अलग किया जा सकता है ? पारवारिक जीवनसे लेकर दाम्पत्य जीवन तक में भी पूरी तरह से कर्तव्यनिष्ठा और आदर्शवाद के दर्शन होते हैं । परिवार में आनेवाले सभी अतिथि आबाल वृद्ध बाबूजी की करुणा और यातिथ्य सत्कार की अमिट छाप लेकर जाते थे । पौत्र और पौत्रियाँ ही नहीं वरन् अतिथियोंके बच्चों तथा अन्य बच्चोंसे भी आपको अधिक स्नेह था। बच्चों में बच्चों जैसा बन जाना आपका प्रमुख स्वभाव था। बाबूजीने सन् १९४८ में " कृपण जगावन चरित्र " नामक पुस्तकका सम्पादन किया था। उसके प्रारम्भिक पृष्ठों को पढ़ने से बाबूजी से पारिवारिक जीवनको झांकी मिलती है। उनके पितामह, मातापिताका स्वभाव, समाजकी स्थिति, बाबूजीको उनके द्वारा
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