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(११) पायुमें सम्पन्न हुआ। जिनसे कई बच्चे जन्में पर आज तीन हो जीवित हैं। सबसे बड़ी पुत्री श्रीमती परोजिनीदेवी हैं, उनसे छोटे बाबू बोरेन्द्रप्रसादजी हैं, और सबसे छोटी सुपुत्री श्रीमती मुमन हैं।
जहां तक शिक्षाका प्रश्न है बाबू वीरेन्द्र और श्रीमती सुमन क्रमशः बी० ए० साहित्यरत्न और एम० ए० (हिन्दी) तक सुशिक्षित हैं। बड़ी सुपुत्री श्रीमती सरोजिनीने भी स्वाध्यायसे पर्याप्त ज्ञानाजेन किया है जो शैक्षणिक योग्यतामें सुमनसे किसी भी प्रकार कम नहीं बताया जा सकता है। धन धान्यसे पूर्ण होते हुये भी अपना जीवन सादगीमय ही व्यतीत किया। अपने पुत्रको बी० ए० तक शिक्षण दिलानेके बाद उन्होंने यह उचित नहीं समझा कि नौकरी करवाई जावे ।
आज नौकरियों में अपनी आत्माका हनन पग पग पर करना पडता है अत: घर पर प्रेम खुलवाकर, साहित्य सेवामें लगा लिया। धर्मनिष्ठता, सम्पादन करना, चरित्र, विद्वता, धर्मप्रचारकी भावना, कवित्व शक्ति, और सादगी पूर्ण जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा श्री वीरेन्द्र जी को अपने पिताजी से ही मिली। उन्होंने अपने पिताजीसे बहुत कुछ सीखा, और पून्य पिताजीने भी अपने होनहार पुत्र को बहुत कुछ सिखाया सच बात तो यह है कि श्री वीरेन्द्रप्रसाद, वीरेन्द्रप्रसाद नहीं वरन् भविष्यमें होनेवाले दूसरे श्री डॉ. कामताप्रसादजी है। प्रेस खुलमानेका प्रमुख ध्येय अधिकसे अधिक प्रचारकार्यमें सुविधा होना ही था, धनोपार्जन तो गौड़ रूपमें ही रहा। पत्रिकाएँ, ट्रेक्ट तथा अन्य छोटी छोटी पुस्तकें ही छपती रहती थीं, बाहरका काम या बहुत कम निकल पाता या ।
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