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सामने आई। वैसे फुटकर लेखनका कार्य तो १८ वर्ष की आयुसे हो प्रारम्भ कर दिया था और छुटपुट लेख विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होने बगे थे। “जैन सिद्धान्त भाकर " पत्रिकाका सम्पादन तो जोवनभर करते रहे। "वोर " साप्ताहिकका अम्पादन भी बड़ी कुशलतासे तीससे भी अधिक वर्षों तक करते रहे । गभग ६० पुस्तके हिन्दी में तथा तीस अंग्रेजीमें लिखीं। बीसियों ट्रेक्ट सरल भाषामें लिखकर लाखों की संख्यामें सर्व. साधारणमें वितरित करवाये। हिन्दी भाषा भाषियों तक तो हिन्दी में लिखे गये अन्य कार्य कर सकते हैं, पर हिन्दी भाषियों के दिये विदेशी विचारकों और साधारण व्यक्तियों तक अंग्रेजी में बिना रिखे किसी भी प्रकार काम नहीं चल सकता था।
डाक्टर साहब सर्वप्रथम पत्रकार व प्रसिद्ध इतिहासकारके रूपमें हमारे सामने आते हैं। स्वयं अनेक पत्रिकाओंका तो सम्पादन किया हो, अनेक साहित्यकारों को भी सम्पादनकी कलासे अवगत कराया तथा नई नई पत्रिकाओं के प्रकाशनके लिये प्रेरणा तथा सहयोग दिया।
बड़े आश्चार्यकी बात तो यह है कि बाबूजीने नवराय होगबन्द एकेडेमी विद्यालयसे केवल कक्षा ९ तक ही शिक्षा प्राप्त की थी। वह मैटिक पास भी न थे पर उनके स्वाध्याय न श्रमने उन्हें जो बना दिया बह किसीसे छिपा नहीं। इतने अल्प शिक्षित होते हुये भी इतना बड़ा कार्य हिन्दी अंग्रेजी संस्कृत पाहि भाषाओं में किया, जिसका कुछ ठिकाना नहीं है।
बाबूजीके दो विवाह हुये थे। पहला विवाह तो अल्पायुमें ही हो गया, जिसे कोई सन्तान नहीं हुई और धर्मपत्नीको मृत्यु भी ५-६ वर्ष बाद हो गई। तदुपरांत पूज्य पिताजीके विशेष भाप्रसे दूसरा विवाह सरस्वतीदेवीके साथ तेईस वर्षकी
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